Breaking News

मच्छर हूँ इन्सान नही

मच्छर हूँ इन्सान नही,
भले चूसता खून मगर
यारों बेईमान नही 

सब धर्मो का आदर करता,
भेद भाव कभी ना करता
काले गोरे का भाव नहीं
मच्छर हूँ इन्सान नही
भले चूसता खून मगर
यारों बेईमान नही 

ऊँच -नीच तो मैं न जानूँ
जात-पात को मैं न मानूँ
खून बहाना काम नही
मच्छर  हूँ इन्सान नही,
भले चूसता खून मगर
यारों बेईमान नही।

मैं डसने को बदनाम सही
लेकिन डसने वाला इंसां
आखिर क्यों बदनाम नहीं
मच्छर हूँ इंसान नहीं
भले चूसता खून मगर
यारों बेईमान नहीं।

डसने आता हूँ रातों में
दिन में लूट सकूँ सबको
ऐसा मेरा ईमान नहीं
मच्छर  हूँ इन्सान नही,
भले चूसता खून मगर
यारों बेईमान नहीं।

जहर खोजते क्यों तुम मुझमें
ज़हर भरा तुम इन्सानों में
लेकिन तुमको भान नहीं
मच्छर  हूँ इन्सान नही,
भले चूसता खून मगर
यारों बेईमान नहीं।


✍ रचनाकार :
अब्दुल्लाह ख़ान
(स.अ.)
प्रा.वि.बनकटी
बेलघाट
गोरखपुर(उ.प्र.)

कोई टिप्पणी नहीं