मैं केवल मधुमास नहीं
प्रियतम!!!मैं केवल मधुमास नहीं।
अधरों तक की प्यास नहीं
प्रियतम!!!मैं केवल मधुमास नहीं।
तुमने शून्य स्वरों से अपने
मुझको निःशब्द बना डाला
व्याकुलता जीवन मेंं बढ़ती रही
कब समझे मन को तुम मेरे।
मैं बारिश की कोई बूँद नहीं
बदरी से भरा आकाश नहीं।
प्रियतम!!!मैं केवल मधुमास नहीं।
बन तो जाऊँ हरित दुपहरी मैं
सन्मुख मैं तुम्हारे पुष्प बनूँ
अन्तिम लक्ष्य बना तो लूँ तुमको
अंकित हियतल पर तुम्हें करुँ
बनूँ सौम्य मूर्ति करुणा की
पर उद्विग्न है बाबला मन कितना
इसका तुमको आभास नहीं
प्रियतम!!!मैं केवल मधुमास नहीं।
अश्रुधार बही जो वर्षों से
चक्रवात प्रचंड जो सहे प्रतिक्षण
अनवरत चले संघर्षों को
तुम भूले तुमको भान नहीं
अभिव्यक्ति मेरी है आहत पर
मैं आडम्बर की श्वांस नहीं
प्रियतम ! ! !मैं केवल मधुमास नहीं।
अपवाद भले ही हों मेरे
सहचरी हठीली हूँ फिर भी
है मूल्य चुकाया बहुत बड़ा
आभूषण मेरे अब अश्रु कहाँ
प्रमुदित फुलवारी तुम बने रहना
मुझको स्वीकृत उपहास नहीं
प्रियतम!!!मैं केवल मधुमास नहीं।
अधरों तक की प्यास नहीं
प्रियतम!!!मैं केवल मधुमास नहीं
लेखिका :
✍ अलका खरे
प्र0अ0
कन्या प्राथमिक विद्यालय रेव,
ब्लॉक मोठ
जनपद झांसी
आभासी अभिब्यक्ति
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