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स्कूल का सपना

पांच बेटियों के जन्म के बाद शम्भू को बेटे के रूप में औलाद मिली थी। बहुत ही पूजा-पाठ और मान-मनौतियों के बाद बेटे की मुराद पूरी हुई। अरसे बाद बउवा मिलने पर अम्मा उसे हीरे की तरह सहेज कर रखती। बुरी नजर से बचाने के लिये गले में ताबीज और काला धागा बाँधे रखती।
पाँचों बहनें उसे कलेजे से लगा कर रखतीं।दिनभर बउवा बहनों की गोद में रहता,जमीन पर पैर ही न पडते उसके। बहनों में सबसे छोटी, मीनातारा उसे बहुत प्यार करती। उसकी हर सुख-सुविधा का खयाल रखती ।बडी बहनें जब घर के कामों में व्यस्त रहतीं तब बउवा मीना की गोद में चढा रहता। छोटे कमजोर हाथों से सरकता तो वह उसे पूरी ताकत से उठा लेती कि कहीं बउवा के मिट्टी न लग जाये।
                शम्भू की किसी भी बेटी ने स्कूल का मुँह नहीं देखा था। होश संभालते ही घर और खेतों के काम में लग गयीं।
बउवा अब स्कूल जाने की उम्र का हो चुका था। आज उसका स्कूल का पहला दिन था।नया बस्ता,नयी ड्रेस और जूते-मोजे पहन कर किसी लाट साहब सा दिख रहा था। बुरी नजर से बचने के लिए माँ ने माथे पर काला टीका लगाया और बलायें लीं।
बउवा को सज-धज कर स्कूल जाते देख मीना का मन मचल उठा। वह माँ का आँचल पकड कर बोली,"अम्मा!हमहूँ स्कूल जइबे।"
अम्मा आँखे तरेर कर बोली,"स्कूल जा के कलक्टर बनिहै का?घर का सगल काम पडा है ओहके को करी?"
मीना उदास हो कर एक कोने में बैठ गयी।आँखों से अश्रुधारा बह चली। तभी माँ ने आवाज लगायी,"बउवा का दूध चूल्हे से उतार ले ओहके पिये खातिर।"मीना ने अनसुना कर दिया।तभी दूध उबल कर बाहर गिर गया।अम्मा देख कर आग बबूला हो गयी। चूल्हे से निकाल कर मीना की पीठ पर दे चइला,दे चइला!"स्कूल जइहै?कलक्टर बनिहै?"
मीना की चीख निकल गयी"ना मारो अम्मा....। न जइहौं। कबहूं न जइहौं।"

कविता तिवारी,
प्रधानाध्यापक,
प्रा0वि0 गाजीपुर,                                     जनपद-फतेहपुर


          

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