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दोहरी शिक्षा व्यवस्था



अविश्वाश करने के लिए सरकारी शब्द ही काफी है फिर हमें सरकारी स्कूल सरकारी अस्पताल आदि कहने की आवश्यकता  नहीं बचती ।सरकारी स्कूल में बच्चों को पढाना समाज में काफी हेय द्रष्टि से देखा जाता है इसलिए समाज के हर नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढाए। और सही भी है जब सरकार ने ही हमें अमीरों और गरीबों के स्कूल में बाँटा है तो हम गरीबों के स्कूल में पढ़ाने की बदनामी क्यों झेलें और हमारे बच्चे कोई भिखारी थोड़े ही है जो सरकारी स्कूल में प्लेट लेकर खाने के लिए लाइन लगाएं।
     लगातार प्राइवेट स्कूल की संख्या में हो रहे इजाफे और उनकी बढती छात्र संख्या को देखकर ऊपर की बात सच ही लगती है लोगों को सरकारी खाना और सुविधाएँ रास नहीं आ रही है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ना मिलने के कलंक के साथ समाज में सरकारी शब्द के प्रति पनपते अविश्वाश को नजरअंदाज़ करना सरकार को मँहगा साबित हो सकता है ।


  आज के समय में कार्यरत अधिकांश वरिष्ठ प्रशासनिक अफसर बड़े गर्व से बताते है कि वे भी सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़े है पर शायद ये भूल जाते है कि उनके समय मान्यता प्राप्त स्कूल नहीं होते थे और उस समय इन स्कूल में पढना ही प्रतिष्ठा और गर्व का विषय था । और समाज के जागरूक लोग ही अपने बच्चों को स्कूल भेजते थे ।
    आपदा प्रभाबित क्षेत्रों के बच्चों को स्कूल तक लाने और रोके रखने के लिए प्रयोग के तौर पर शुरू की गयी मध्यान्ह भोजन योजना क्यों पूरे देश में लागू की गयी ये समझ से परे है शायद सरकार की नजर में पूरा देश ही भुखमरी से जूझता नजर आया होगा पर अब ये योजना शिक्षा में सबसे बड़ी बाधा बन रहा है सरकारी स्कूल केवल रसोई घर बन कर रह गए है और प्रधानाध्यापक मुख्य रसोई व्यवस्थापक ।लोगों को ये रास नहीं आ रहा है कि उन्हें शिक्षा की जगह केवल खाना परोसा जाए इसलिये बहुत से अभिभावक इसी तर्क के साथ प्राइवेट स्कूल का रुख कर रहे हैं।
          जिस तरह चार दीबारें बना देने से कोई भवन घर नहीं हो जाता जब तक उसे घर कहने लायक सारी सुबिधायें ना जुटा ली जाएँ उसी तरह केवल कुछ कमरे बनाकर किसी भवन को स्कूल का नाम दे देने मात्र से वह स्कूल नहीं बन जाता है जब तक उसमे स्कूल लायक सभी सुविधाएँ ना हो जाए पर आजादी के इतने वर्षो बाद  एक सख्त प्रभावी कानून और वक़्त बेवक्त सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी सरकार से एक पूर्ण प्राथमिक विद्यालय की अपेक्षा कर सकते है जिसमे एक चपरासी एक आया एक क्लर्क एक लाइब्रेरियन एक स्पोर्ट टीचर और पांच कक्षा कक्ष के लिए पांच अध्यापक हो ।
   जब तक आपके पास पड़ोस में पूर्ण व्यबस्था बाला निजी विद्यालय बनता रहेगा आप अपने बच्चों को उसी में पढ़ाते रहेगें।भले ही आपको फीस चुकाने के लिए अतरिक्त प्रयास करने पड़ें।


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