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चन्दन की खुशबू


चन्दन को आज की सुबह बहुत अच्छी लग रही थी क्योकि आज पहली बार ऐसा हुआ था कि उसके पिता जी उसे न सिर्फ सड़क तक छोड़ने आये बल्कि आज घर में भी उसकी तारीफ़ कर रहे थे, वरना तो बिज़नेस के काम से फुरसत ही कहा  पाते थे। वह जोश से लबरेज़ अपनी साइकिल से स्कूल की तरफ बढ़ रहा था। उसके कानो में रह रह के पिता जी के शब्द गूँज रहे थे जिसे वो माँ से रसोईघर में कह रहे थे, "देखना एक दिन  चन्दन ऐसा काम करेगा कि उसके नाम की खुशबू हर तरफ महकेगी।"

    चन्दन स्कूल के पास पहुंचा ही था कि उसे सड़क पर एक सीवर का ढक्कन खुला हुआ दिखा। उसे कुछ गड़बड़ नज़र आई। वह फ़ौरन  साईकिल वही खडी कर सीवर के पास पहुच गया। अंदर झाँककर देखते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसने देखा कि यही कोई छह -सात साल की बच्ची जो शायद उसी के स्कूल की थी उस सीवर के गड्ढे में गिर गई थी और कीचड में धंसती चली जा रही थी। गन्दा पानी और मल उसके मुह में भर रहे थे जिसके कारण वह चिल्ला भी नही पा रही थी। वह तड़प रही थी। चन्दन उसकी हालत देख सकपका गया था। उसने घबराहट में चारो तरफ नज़र दौड़ाई पर कोई दिखाई नही दिया और न ही कोई ऐसी चीज ही दिखी कि जिसे अंदर फेककर वह बच्ची को बाहर खीच सकता।


बच्ची तेजी से धंसती चली जा रही थी।चन्दन के कानों में एक बार फिर पिता जी के शब्द गूंज उठे,  "देखना एक दिन......खुशबू हर तरफ ...।" उसने अपना बस्ता तेजी से उतारकर फेंक दिया और गटर की ओर लपका। अगले ही पल वह गटर की दुर्गन्ध से सन चुका था पर उसने कुछ भी ध्यान न देते हुए अपनी पूरी ताकत से बच्ची को उठाकर गटर के बाहर फेंक दिया। बच्ची बेहोश थी और चन्दन बेहोश हो रहा था। सुबह के समय इतनी बड़ी घटना स्कूल के बाहर घट रही थी और सब बेखबर थे। बच्ची अभी भी बेसुध थी , चन्दन न जाने कब  का डू ब  चुका था। उसकी खुशबू  उस गटर से बाहर निकलकर चारो और फ़ैल रही थी।

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