कौन हलाहल पान करे...
रत स्वार्थ हुआ नर आज यहाँ,
अपने हित की बस बात विचारे ।
अब कौन हलाहल पान करे,
अब कौन धरा पर गंग उतारे।
सबके दुख दारुण कौन हरे,
भव कष्ट यहाँ अब कौन निवारे।
ख़ुद आकर ईश्वर ही अब तो,
इस भारत का निज भाग्य सँवारे।
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सुन्दरी सवैया छंद
शिल्प :- आठ सगण+ गुरु, चार चरण
(112)8+2
कुल 23 वर्ण, 12-13 वर्ण पर यति
(h) (h) (h) (h) (h) (h)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। :)
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