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हसरतों के बोझ तले पिस रहा है बचपन

हसरतों के बोझ तले पिस रहा है बचपन


मां बाप की हसरतों के बोझ तले,
पिस रहा है आज का बचपन।
खेल-कूद और मस्ती भूले
और बच्चे हो गए हैं बेचैन


खिलने को बेचैन है फूल,
पर खिलने को नहीं मिल रहा है मौसम।
मां बाप की चाहतों के तले,
आज दम तोड़ रहा है बचपन।


खेलने को बेचैन है बच्चा,
पर खेलने को नहीं मिल रहा है खेल।
मां बाप की उम्मीदों के तले,
आज झुक रहा है बचपन।


जिंदगी को जीने के लिए,
आज़ादी की जरूरत है।
मां बाप की हसरतों के बोझ तले,
पिस रहा है आज का बचपन।


✍️  रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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