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चश्में ने आंखों को खोला


चश्में ने आंखों को खोला

चश्में ने आंखों को खोला,
सच का एहसास कराया।
दुनिया को देखा तो समझा,
कितना कुछ गया छुपाया।

आँखें खुली तो देखा,
दुनिया कितनी है खूबसूरत।
परछाइयों में खोया था,
सच को नहीं पहचान था पाया।

सच की झलक मिली,
जीवन की नई राह मिली।
एक नई सुबह आई तब,
अंधकार से निकल पाया।

नए सिरे से शुरू किया,
जीवन को समझा।
आगे बढ़ूंगा तब जब
गलतियों से सीख पाया,

चश्में ने आंखों को खोला,
एक नया सफर हुआ शुरू।
एक नई दुनिया देखी हमने, 
जब सच का रास्ता दिखाया 


चश्मे के माध्यम से सच को देखने की बात कर रहा हूँ। चश्मा हमें वास्तविक दुनिया को देखने में मदद करता है, और हमें उस सच से रूबरू कराता है जो हमने पहले कभी नहीं देखा था। चश्मा हमें दिखाता है कि दुनिया कितनी खूबसूरत है, लेकिन साथ ही यह हमें दिखाता है कि दुनिया कितनी खराब भी है। चश्मा हमें वास्तविकता के साथ सामना कराता है, और हमें एक नई दुनिया के बारे में जानने में मदद करता है।

चश्मे के माध्यम से सच को देखने के महत्व पर भी जोर दे रहा हूँ। सच को देखना हमेशा आसान नहीं होता है, लेकिन यह आवश्यक है। सच को देखने से हम दुनिया को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं, और हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं।


✍️  रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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