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माँ याद बहुत ही आती है

जब मैं बिटिया थी
माँ को कम समझती थी...
उसकी गुस्सा को
बेवज़ह है...
यही समझती थी....
रूठ जाती थी जब जी चाहे...
वो मनाएं मुझे...
इसे अपना हक़ समझती थी...
मनपसन्द खाना न मिले तो...
भूखी सो जाती थी....
माँ मुझे खिलाए जगाकर....
इंतज़ार यही करती थी....
मन की न होने पर
उनसे झगड़ा करती थी...
मन चाही चीजें लेकर ही...
मैं माना करती थी....
क्योंकि मैं एक बेटी थी...
माँ पर अधिकार समझती थी...
आज वर्षों बाद जब ख़ुद
माँ का दर्ज़ा पाया....
होती है क्या माँ मुझे...
आज समझ में ये आया....
जब बेटी मेरी नख़रे अपने
मुझको पल-पल दिखलाती है...
छोटी-छोटी बातों पर....
मुझसे खफ़ा हो जाती है....
कभी मैं उस से कभी वो मुझसे
रूठ जाती है...
उस पल मुझको मेरी माँ....
सच याद बहुत ही आती है.....
माँ बनकर मैंने जाना
माँ कितनी अच्छी थी...
मेरी नादानियों को कैसे...
प्यार से भुलाती थी....
जान गई हूँ अब मैं माँ
कोई नही तुझसा जग में
कोई नही जो प्यार करे
मुझको इस बेदर्द ज़माने में...
हर रिश्ता फिर से पा सकती हूँ
पर तुझको पाना मुश्क़िल है
माँ के दिल जैसा इस जग में
होता नही किसी का दिल है
माँ कहा नही अब तक ये मैंने
आज मग़र ये कहती हूँ
इस दुनिया मे सबसे ज्यादा
प्यार मैं तुझसे करती हूँ
तूने मुझको जन्म दिया है
संस्कार भी तुझसे पाए हैं
तूने ही निस्वार्थ प्रेम किया है
मेरे लिए कितने ही अश्रु बहाए हैं
तू मेरी माँ है आज सभी से
गर्वित हो मैं कहती हूँ...
हाँ गर्वित हो मैं कहती हूँ

 रचयिता
अनुराधा प्लावत
स0अ0, उ०प्रा०वि०झरौठा,
बल्देव
मथुरा उ०प्र०

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