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विजयदशमी

 "विजयदशमी "

मैं विजय का उत्सव मना रहा हूं.....

मैं बुराइयों को कुछ यूं हरा रहा हूं....

लड़ रहा हूं मै खुद के अंधकार से....

राम को खुद मे जगा रहा हूं.....


मर्यादा और धर्म का मान बढ़ा रहा हूं....

हां ! मैं विजय का उत्सव मना रहा हूं.....


अंधकार ,अन्याय भ्रष्ट्राचार से लड़ कर....

राम का मान बढ़ा रहा हूं.....

हां ! मैं विजय का उत्सव मना रहा हूं......

सच कहूं या झूठ....

मैं अपनी मर्यादाओं को हर पल निभा रहा हूं....

हां ! मैं राम का उत्सव मना रहा हूं....

खुद के अंदर के रावण को कुछ यूं हरा रहा हूं.....

मैं जाति धर्म के भेद मिटा रहा हूं.....

मैं सत्य की जीत के लिए...

सब कुछ समर्पित करता जा रहा हूं.....

मैं विजयादशमी के मायने बता रहा हूं.....

मैं रामराज्य का वैभव बता रहा हूं...

मैं रावण को अपने शब्दों से हरा रहा हूं.....

✍️

शुभम श्रीवास्तव

सहायक अध्यापक

अमेठी


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