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प्राइमरी स्कूल

प्राइमरी स्कूल

प्राइमरी की शाला,का रूप है निराला,
जर्जर भवन के नीचे, आधा जीवन बीता,
पंखा है तो बिजली नहीं,
बिजली है तो पंखा धीरे धीरे हिलता,
गर्मी में मच्छर को रोकें, सर्दी में हवा के झोंके,
कभी पसीने से लतपथ,कभी सर्दियों में बेहाल,
कुछ पक्के कुछ कच्चे,18*20 के कमरे में
80 से 90 बच्चे।

बच्चों का वार्षिक परीक्षाफल,उसी दिन तय हो जाता है,
जब बच्चा साल में एक महीना मौसी के घर 
और एक महीना मामा के घर रह के आता है।

जो पहले पढ़ा वो सब भुला,
कभी मूंगफली की खेती में काम आया,
तो कभी माँ अस्पताल में है यह कहकर,
घर की रखवाली में ताला बनकर झूला।

सबकुछ निःशुल्क है यह जानकर कुछ अभिभावक,
20 की कॉपी न दिला पाते,
कभी मासूम बच्चे टॉफ़ी और कॉपी के बीच में 
टॉफ़ी खरीद लेते और कॉपी भूल जाते,
इस तरह बचपना जीत जाता,
मगर हम अध्यापक हार जाते,

माँ ने कहा एक पेन्सिल से,दोनों भाई-बहन को पढ़ना है,
उसने मेरी कलम लड़ना है,यही कहकर लड़ना है,
हम ऐसे बच्चों को पढ़ाते है,
जिनके परिजन बच्चों के,यूनिफार्म के पैसे भी खर्च कर
पूछ्ने पर उल्टा हमें कटघरे में खड़े कर जाते हैं,

एसी कमरे में लैपटॉप पर,एलाउन्स पे काम करने वाले,
क्या जाने कि D.B.T जैसे न जाने कितने सरकारी काम
का डाटा हम अपनी तनखवाह से भरवाते है,
हम ऐसी शाला में पढ़ाने जाते हैं।
प्राइमरी शाला का रूप है निराला।


अपनी परीक्षा छोड़,माध्यमिक की परीक्षा कराता है,
चुनाव के समय सर्वज्ञानी बन जाता है,
राशन,जनगणना,रैली
विद्यालय त्यागे बच्चों को ढूंढ कर लाता है,
मोहल्ले में घूम-घुम के बच्चों को पढ़ाता है,
फिर भी कहा जाता है की
 प्राइमरी शिक्षक को कुछ नहीं आता है।

हम ऐसी शाला में पढ़ाने जाते हैं,
जहाँ हर कोई हमें जाचने आते है,
नहाना-धोना-खाना-पीना,
बच्चे के सम्पूर्ण विकास की जिम्मेदारी हमारी है,

बहुत कर चुके शिक्षक अब सबकी बारी है...
अब सबकी बारी है...
    
✍️
नूतन शाही(स० अ०)
प्रा०वि०बेलवार, खोराबार
जनपद-गोरखपुर

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