जल
'जल'
जल बिन जीवन शून्य, शून्यवत है सृष्टि की अविरल धारा।
तीन चौथाई ढकी है अवनी जल अथाह है सबसे न्यारा।।
उदजन प्राणवायु मिलकर जल बनता,
तरल वाष्प हिम तीन रूपों में मिलता।
खिली कली उपवन में प्रतिपल रहती,
हरी भरी यह प्रकृति रहस्य यह कहती।
प्रस्तर खण्ड अरत्न ही समझो जल है जग में सबसे प्यारा।।
तीन चौथाई ०।।
अश्रु धार बन हृदय पीर दिखलाता,
कृषक स्वेद कण बहा अन्न उपजाता।
अण्डज पिण्डज स्वेदज उद्भिज्ज सारे,
सकल सृष्टि संचरित है नीर सहारे।।
मैला न कर जल हे! मानव इसी से है अस्तित्व तुम्हारा।।
तीन चौथाई ०।।
वर्षा के जल को मटकी में भरते देखा,
मरुभूमि में अधर पिपासित मरते देखा।
ठहरो! वन कटाव को रोको, वृक्ष लगाओ,
नदी तड़ाग कूप नार को स्वच्छ बनाओ।।
खुले हुये नल कभी न छोड़ो जन जन में फैलाओ नारा।।
तीन चौथाई ०।।
बाहर के पंक्षी भी महिमा गाते रहते
भारत का अमृत जल पी इठलाते फिरते।
ज्ञानोदक का दीप तमस को दूर भगाये,
सच्चा भारत वीर वही जो नीर बचाये।।
जल संरक्षण परमलक्ष्य हो करें शेष अनुसरण हमारा।।
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शेषमणि शर्मा'शेष'प्रयागराज
प्रा०वि०- नक्कूपुर, वि०खं०- छानबे
जनपद-मीरजापुर उत्तर प्रदेश
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