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नदिया सी नारी

नदिया सी नारी

नदिया की धारा सी बनकर ,
कल कल करके बहती जाए ।
तटबंधों से लिपटी होकर,
सुंदर एक संसार सजाए ।
नव जीवन की आशा बनकर,
 अवरोधों से जो टकराए ,
फिर भी नैया पार लगाकर ,
निर्मल सी पहचान बनाए ।
उफनाती रहती है जब जब,
घनघोर एक तूफान मचाए ,
आता जो भी जद में उसकी,
 चाहकर भी बच ना पाए, 
प्रलय का भयंकर शोर, 
कोई भी टाल ना पाए,
थमती जब भी अपनी गति से, ब
नवल रूप बिखराती धरा पर, 
स्वर्ण किरण सी फिर छा जाए ।
जीवन का अमृत जल बनकर, 
प्राणों की दाता कहलाए,
आओ हम कोशिश करें कि हर नारी की एक पहचान बने,
बहन, बेटी, मां, पत्नी बन कर सबके घर की शान बने।।

✍️
सुकीर्ति तिवारी
सहायक अध्यापक
कम्पोजिट उच्च प्राथमिक विद्यालय करहिया, जंगल कौड़िया गोरखपुर

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