मेरी उत्कट अभीप्सा
मेरी उत्कट अभीप्सा
मैं भी पहुँचूंगा उस स्थल तक
भव असीम सिद्धि के जल तक
यत्र सफलता नृत्य हो करती
ख़ुशी तत्र हो गगरी भरती
कोलाहल एक नाद सुनाए
जहाँ भोर उठ सरगम गाये
हो उसांस के अद्भुत मेले
जहाँ लचकती कोमल बेले
हो आनंद हो मधुरिम छाया
सेवा करती जहाँ हो माया
तिमिर रैन कदाचित आये
सूर्यदेव बस रश्मि गिराएं
दुःख का न तो बोध तनिक हो
जीवन आभा श्रेष्ठ मणिक हो
जहाँ परम् तुष्टि हो साधक
तत्व न कोई रण का बाधक
भोग करूँगा उत्तम बल तक
मैं भी पहुँचूंगा उस स्थल तक..!!
✍️
'कविराज' दिग्विजय सिंह
शिक्षक-प्रा०वि०दलपतपुर
जनपद-गोंडा
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