भाव
भाव
राम रहीम की सन्ताने
गंगा जमुनी संस्कृति के मिसाल है।
वर्षो से बिछड़े रहे मगर यादों को दिल में सजाये रहे।
दोनों के स्नेह को देख बरबस नयनो की धार बही।
गिले शिकवे शिकायतों में भी देखा मोहब्बत की बयार बही।
चन्द अपनों के दर्द से दिल पर आघात रहा।
चाचा रसीद के प्रेम से रिस्तों में ज्वार बही।
लव थिरके पर ना बोले
अंशुवन की प्रतिपल धार बहे।
लहूँ के रिस्तो ने पीढ़ियों के संस्कार को डूबा दिया।
पर पा के पराये दामन को
खोते रिस्तों पर एतबार किया।
भाई- भाई को नीचा दिखाने को जहाँ आतुर है लोग।
हिंदू मुसलमाँ कह के नफरत यहाँ फैलाते लोग।
शुक्र है रब ने आज यैसे रिश्ते का दीदार कराया।
कलंकित करने वाले अपनों के रिस्तों से अच्छे है।
सुखद यहसास कराने वाले रिश्ते ही पराये।।
सलामत रखें प्रभु रिस्तों पे यकीन दिलाने वाले फरिश्तो को।
सदा दिल में संजोये रखेंगे मिलन की यह आस मिलते रहे दोनों वर्षो तक ।।।
✍ रचनाकार :
ममताप्रीति श्रीवास्तव
स0अ0, प्रा0 वि0 बेईली
बड़हलगंज, गोरखपुर
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