माँ
**** *माँ* ****
नौ महीने रखा पेट मे तुझको,
दुनिया ये दिखलाई।
माँ लफ्ज़ है ऐसा,
जिस में जन्नत है समाई।।
काट के अपनी काया,
तेरा पेट भराया,तेरा पेट भराया,
पेट भरा के, तुझे चलना सिखाया,
तुझे चलना सिखाया
हँसी से तेरी वो हँसी,
रोने से आँख भर आईं
माँ लफ्ज़ है ऐसा,
जिस में जन्नत समाई।
गीला तेरा बिस्तर,
माता सूखे में न सोये
त्यागों की देवी की ममता
जान सके न कोय
मुख से चमक उड़ जाती है,
पलक जो तैने फड़काई
माँ लफ्ज़ है ऐसा,
जिस में जन्नत है समाई।
अपने बदन के सारे लहू को
तू गिरा दे उनकी कारिन,
शीश कटा दे,हस्ती मिटा दे,
तो भी न उतरे माँ का ऋण
माँ का ऋण तो ऐसा ऋण है
जिसकी हुई न भरपाई।
माँ लफ्ज़ है ऐसा
जिस में जन्नत है समाई।
जीते जी जन्नत है धरती पे
माँ के ऋण को मानकर
सवा सेर वज़न तू रख ले
नहीं तो पेट पे अपने बाँधकर
जीना बेकार है तेरा
जो फिर भी अक़्ल न आई
माँ लफ्ज़ है ऐसा
जिस में जन्नत है समाई।
ताउम्र कमाई ,
पूत पे अपने वार दी
तेरे शौक की खातिर
हर इच्छा अपनी मार दी
जुग जुग जिये मेरा लाला
सदा ये दिल से सदा ये आई
माँ लफ्ज़ है ऐसा
जिस में जन्नत है समाई।
करता रहे तू माँ की पूजा
इसकी जगह न कोई दूजा
ग़म का साया इसको घेरे
माथे बल पड़ जाएं तेरे
पूरे जीवन रहे तू ऐसा
तो होगी छोटी सी अदाई
माँ लफ्ज़ है ऐसा
जिस में जन्नत है समाई
राजकुमार दिवाकर(H.T.)
प्राथमिक विद्यालय नवाबगंज पार्सल
वि0क्षे0 स्वार जनपद रामपुर (यूपी)
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