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ख़ामोशी🙎😦🤫

ख़ामोशी🙎😦🤫

"बहुत कुछ कहती है ख़ामोशी
खामोश होकर..........
नभ् की नीलिमा सी
विस्तृत भी होती है ..
     दर्द के कई परतो को
     अक्सर खोलती है ।
अपनी चहक से
निशब्द गूँजती है ।
      शोरगुल से दूर
     समाधिस्थ अवस्था में भी
     बातो की छंदमय 
      चीख सुनती है  !!
 यथार्थ के धरातल पर
बिछा देती है सारा सौन्दर्रय्
   हटा देती है कभी -कभी
  दुनिया के दुःखो की गर्द
मिटा देती है मगर कही-कही
दिलो की अनमोल मीठी वाणी..
ख़ामोशी कभी खामोश होकर
हर दिल का प्यार दिलाती है....
  पर कभी  ....कभी!!
 आशाओ के दीपक को
मौन रहकर बुझाती है।
कभी ख़ामोशी इतनी अधीर होती है ..!!!
चाहकर भी शब्दों को नही बोल
पाती है...!!!
  है कही पर इतनी विकराल
  टूट जाये सारी बंधती आस
कही पर इतनी निर्मल होती है
देती शांत निश्छल प्रेम का आधार
 ये सत्य है!!
ख़ामोशी चकित नयनो सी लगती है .......!
कभी तीक्षण रूप में प्रस्फुटित होकर.......?
अंतरात्मा को भेदती है ।
 किन्तु! ये भी सत्य है....
ख़ामोशी---------!!!!!!!
कभी शांत सरिता सी
दिल के अनमोल बोलो को बोलती है ।।।।।।।

✍️दीप्ति राय (स0 अ0)
 प्रा0 वि0 रायगंज
खोराबार गोरखपुर

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