तुम क्यों हो
तुम क्यों हो
मैं क्योंकर तुमसे कमतर हूँ ये ही सोच तुम्हारी है तो क्यों है?
हाँ तुम बेहतर थे बेहतर हो पर,
मेरे जीवन के फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले तुम हो तो हो क्या?
पैमानों पर मुझे नापने को मापदण्ड जो हैं, तो तुम्हारे ही क्यों है ?
बहुत सह लिया तुम्हारे आलोचनाओं के दंश को,
मुझे मेरी भूलों पर शूल चुभाने वाले तुम हो तो क्यों हो??
हाँ मैं जानती हूं तुम कौन हो?
बस इतना समझ लो कि तुम्हें,
अंतिम सीमा तक बर्दाश्त कर रही हूँ, मौन हूँ।।
साहस नहीं तुममें कह जाओ आंख मिलाकर,
मेरे पीछे मेरा इतिहास बताने वाले तुम क्यों हो???
स्वार्थ से जन्में हो मेरे कोमल मन पर,
प्रेम पाश की बेल चढ़ाने वाले तुम हो तो क्यों हो??
जब जब शिखरों को भेदा मैंने अपने साहस के भालों से ,
मर्यादा और लाचारी का भेद सिखाने वाले तुम क्यों हो??
मैं क्योंकर तुमसे कमतर हु और तुम मुझसे बेहतर हो ये ,
बतलाने वाले तुम मेरे जीवन मे अब तक हो तो क्यों हो???
डॉ0 श्रीमती जया सिंह
प्रधानाध्यापिका
प्राथमिक विद्यालय उसका (अंग्रेजी माध्यम)
क्षेत्र- पिपराइच
जिला- गोरखपुर
Beautiful poem to Show a real 'anterdwand'of ♥ of many woman.
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