बच्चों तुम तकदीर हो कल के हिंदुस्तान की
llबच्चों तुम तकदीर हो कल के हिंदुस्तान कीll
वे गत्ते के टुकड़े पर झपटते
प्लास्टिक की बोतल
फटी किताब की खातिर लड़ते
घरों से निकले कचरे पर भविष्य की नींव रखते
उन्हें चिंता नहीं कल की
उन्हें फिक्र है केवल आज केे भरपेट भोजन की
मैं सिखाना चाहती हूँ
नैतिक ज्ञान
बताना चाहती हूँ ,
किताबों में लिखी तमाम बातें
पढ़ाना चाहती हूं,
उन्हें एडिसन और हॉकिंग्स की खोजें
मैं बताना चाहती हूँ
किताबें जीने के लिए बहुत जरूरी हैं
इन्हें पढो..!
किताबें पढ़ने से जिंदगी खूबसूरत होती है
जिंदगी गढो.!
किताबों की शक्ल में उन्हें दिखती हैं रोटियां
मैं देखती हूँ.... उन्हें..
सड़क किनारे चीथड़ों में
ठंड से ठिठुरते
हाथ फैलाये
एक ब्रेड या समोसे पर झपटते
मैं सिखाना चाहती हूँ ,
माँगना बुरी बात है
स्कूल आओ ...
पढो ...किताबें !
जानो ..कि., ये दुनिया पहले ऐसी न थी जैसी अब है
ये धरती, फूल पत्तियां चाँद और तारे , परियों के किस्से सब तुम्हारे हैं ।
मैं कहती हूं तुममें से कोई बन सकता है कलाम , मैरीकॉम या किरण बेदी
प्लास्टिक की बोतल
फटी किताब की खातिर लड़ते
घरों से निकले कचरे पर भविष्य की नींव रखते
उन्हें चिंता नहीं कल की
उन्हें फिक्र है केवल आज केे भरपेट भोजन की
मैं सिखाना चाहती हूँ
नैतिक ज्ञान
बताना चाहती हूँ ,
किताबों में लिखी तमाम बातें
पढ़ाना चाहती हूं,
उन्हें एडिसन और हॉकिंग्स की खोजें
मैं बताना चाहती हूँ
किताबें जीने के लिए बहुत जरूरी हैं
इन्हें पढो..!
किताबें पढ़ने से जिंदगी खूबसूरत होती है
जिंदगी गढो.!
किताबों की शक्ल में उन्हें दिखती हैं रोटियां
मैं देखती हूँ.... उन्हें..
सड़क किनारे चीथड़ों में
ठंड से ठिठुरते
हाथ फैलाये
एक ब्रेड या समोसे पर झपटते
मैं सिखाना चाहती हूँ ,
माँगना बुरी बात है
स्कूल आओ ...
पढो ...किताबें !
जानो ..कि., ये दुनिया पहले ऐसी न थी जैसी अब है
ये धरती, फूल पत्तियां चाँद और तारे , परियों के किस्से सब तुम्हारे हैं ।
मैं कहती हूं तुममें से कोई बन सकता है कलाम , मैरीकॉम या किरण बेदी
रख देती हूँ गुलाबी कागज और पेन
आओ पढो!
उन्हें ...केवल भूख है!
भूख बड़ी होतीहै !
अक्षर भूख को प्रतिस्थापित नहीं करते।
मैं देखती हूँ ..
बर्तनों की कालिख छुड़ाते नन्हें हाथ
पानी में भीगे ठंड से ठिठुरते
अपने घर की खिड़की खोल
भीगी हथेली पर ,
रख देती हूं एक मुट्ठी धूप ।
उनकी आँखों में उम्मीद के जुगुनू चमकते हैं,
उम्मीद का दूसरा छोर अनन्त है ...
हर बार धूप कम पड़ जाती
कुछ गर्म कपड़े भूख नहीं मिटाते।
किताबें ...,
कुछ रूपये ...,
गर्म कपड़े ......,
इनसे भूख नहीं मिटती ...!
प्रतिभा श्री
सहायक अध्यापिका
जनपद-आजमगढ़
आओ पढो!
उन्हें ...केवल भूख है!
भूख बड़ी होतीहै !
अक्षर भूख को प्रतिस्थापित नहीं करते।
मैं देखती हूँ ..
बर्तनों की कालिख छुड़ाते नन्हें हाथ
पानी में भीगे ठंड से ठिठुरते
अपने घर की खिड़की खोल
भीगी हथेली पर ,
रख देती हूं एक मुट्ठी धूप ।
उनकी आँखों में उम्मीद के जुगुनू चमकते हैं,
उम्मीद का दूसरा छोर अनन्त है ...
हर बार धूप कम पड़ जाती
कुछ गर्म कपड़े भूख नहीं मिटाते।
किताबें ...,
कुछ रूपये ...,
गर्म कपड़े ......,
इनसे भूख नहीं मिटती ...!
प्रतिभा श्री
सहायक अध्यापिका
जनपद-आजमगढ़
Bahut hi sacchai Ko bariki se dekha Gaya
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