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प्रशिक्षण की यादें : चींटी वाले बाबा

प्रशिक्षण की यादें
(चींटी वाले बाबा)

जहां इस संसार में मानव मानव के खून का प्यासा है,वही इस संसार में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपनी मानवता के बल पर दूसरे प्राणियों की सेवा करने में अपना महान कर्तव्य समझते हैं। 
                 बात उन दिनों की है जब मैं गोरखपुर डायट पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा था, प्रशिक्षण के मात्र 4 दिन ही बीते थे कि एक दिन मैं अपने मित्र मंडली के साथ परिसर में स्थित एक पेड़ के नीचे खड़ा बाते कर रहे था कि मेरी दृष्टि कुछ गायों पर पड़ी जो कुछ देर टहलती और रुक जाती और उस पेड़ के नीचे देखती जहां मैं अपने मित्रों के साथ खड़ा गपशप कर रहा था फिर कुछ देर में मेरी दृष्टि ज़मीन पर उन चीटियों की झुंड पर भी पड़ी जो इधर-उधर इस प्रकार से विचरण कर रही थी मानो किसी की तलाश में हो,मैं तो समझ ही नहीं पाया यह गाय और चीटियां किसका इंतजार कर रही हैं ?

 तभी सभी गाय एकाएक चिल्लाने लगी और चींटियों के मध्य हलचल पैदा हुई और इतने में सभी चीटियां एक ओर को भागने लगी सभी एक दूसरे से आगे निकलना चाह रही थी कि मेरी निगाह एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जिसकी आयु लगभग 75 वर्ष होगी जिसकी कमर मानों धरती को सलाम कर रही हो उन चीटियों की ओर बढ़ा चला आ रहा था और चीटियां उनकी ओर,और तभी सभी से आगे गायों का झुंड निकलते हुए उस व्यक्ति के पास पहुंचकर चिल्लाने लगी और वह व्यक्ति रुककर थैला से कुछ निकालता और गायों को दे देता,और कुछ क़दम आगे निकलकर चीटियों की ओर बढ़कर चीटियों को भी थैले से कुछ निकाल कर देता और इस प्रकार पूरे परिसर में टहल_टहल चीटियों और गायों को ब्रेकफास्ट कराता और यह दोनों बड़े चाव से ब्रेकफास्ट करती। 

मुझे रहा ना गया और मैं गपशप छोड़ कर उस चींटी वाले बाबा से मिला तो पता चला कि इनका नाम श्री बाबूलाल है जो कपड़े के बड़े व्यवसाई हैं पूछने पर उन्होंने बताया कि थैले में गायों के लिए गुड़ और चीटियों के लिए बिस्किट है यह कार्य जाड़ा,गर्मी,बरसात प्रतिदिन करते हैं। अगर किसी कारण से यह नहीं आ पाते तो इनकी धर्मपत्नी सीतादेवी यह पुण्य कार्य करती हैं और यह पुण्य कार्य  इन मारवाड़ी दंपति द्वारा लगभग 8 से 10 वर्ष से किया जा रहा है ऐसा क्यों करते हैं,और इसका क्या लाभ है ? पूछने पर टका सा जवाब मिला कि इस संसार में सब कुछ पैसा ही नहीं है,मानव वही है जो समूचे मानवता का परिचय देते हुए ईश्वर द्वारा बनाए गए सभी प्राणी की सेवा करें। मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ कि इस कलयुगी समय में जब सम्पूर्ण संसार मानवता के मरणासन्न पर पड़ा हैं अंतिम सांस ले रहा हैं तो ऐसे लोग ही अपनी इस सेवा रूपी आक्सीजन से इस संसार की मानवता को जीवित किए हुए हैै। आज दस वर्ष हो गए इस घटना को पर मन मस्तिष्क में वो महान व्यक्ति अपनी छाया छोड़े हुए हैं, और मैं भी यहीं कोशिश करता रहता हूं की मेरे व्यक्तित्व द्वारा हर संभव मानवता की सेवा की जाए।
 
अब्दुल्ला खान
प्राथमिक विद्यालय बनकटी
बेलघाट गोरखपुर

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