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जिंदगी

तुरुप के पत्तों सी है ये जिंदगी
कभी बाजी इधर, कभी बाजी उधर
आडम्बर और स्वार्थ ही खुशी महसूस करते हैं
उन्हें नहीं पता उनकी सहूलियत में छिपी है
औरों की वेदना
बस फेंककर एक पत्ता पलट देते हैं बाजी।
कभी देखते ही नहीं उस तरफ,
जहाँ कोई हारा भी है।
फिर एक नयी बाजी,
फिर एक नयी चाल
फिर एक सम्भावित जीत
फिर एक सम्भावित हार।
सिर्फ एक तमाशा है
तब भी एक आशा है उस जीत की,
जो टिकी हुई है कुछ तुरुप के पत्तों पर।
फेंकी गई चाल पर जीते हैं लोग जिंदगी।
फर्क इतना सा है कि समझ ही नहीं पाते वो,
खुद ताश के पत्ते हैं।
कभी बाजी इधर,कभी बाजी उधर।।।।।।।



लेखिका : 
✍  अलका खरे
प्र0अ0
कन्या प्राथमिक विद्यालय रेव,
ब्लॉक मोठ
जनपद झांसी

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