कैसा पावन रिश्ता?
स्तब्ध हुआ, निःशब्द हुआ
सदमा ये कैसा छाया है
ऐसे पावन रिश्ते का
अंत ये कैसा आया है
जो जख्म दिए तुमने तन को
एक दिन भर ही जाएंगे
जो चोट लगी अंतर्मन को
वो साथ मेरे ही जाऐंगे
रूह कांप सी जाती है
कहर ये कैसा ढ़ाया है
ऐसे पावन.....
तुम क्या जानो कैसे अब तक
हर जुल्म को सह के जिन्दा हैं
मैं पिंजरे की मैना हूँ
तू आजाद परिन्दा है
श्वांस- श्वांस पर पहरा है
वक्त ये कैसा आया है
ऐसे पावन.....
✍ रचनाकार
रेनू अग्रहरि
स0अ0
प्रा0वि0 अजीजपुर
सुलतानपुर
Beautiful lines
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