ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।
हम मनोविज्ञान के अनुसार मन के भाव जाने।
और शिक्षण-शास्त्र के सिद्धांत को हर वक्त माने।
हम नवाचारी बनें नित नव तरीके आजमाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
और शिक्षण-शास्त्र के सिद्धांत को हर वक्त माने।
हम नवाचारी बनें नित नव तरीके आजमाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
हो उचित सम्मान बालोचित सहज अभिव्यक्तियों का।
हो सके उत्थान दैहिक, मानसिक सब शक्तियों का।
हम रचें भयमुक्त वातावरण,रुचिकर हों क्रियाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
हो सके उत्थान दैहिक, मानसिक सब शक्तियों का।
हम रचें भयमुक्त वातावरण,रुचिकर हों क्रियाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
होवे सर्वांगीण उन्नति बालकों की किस तरह से।
तर्क,अधिगम,कल्पना,चिन्तन,सृजन हो जिस तरह से।
इस तरह प्रेरित करें बच्चे स्वयं कर सीख जाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
तर्क,अधिगम,कल्पना,चिन्तन,सृजन हो जिस तरह से।
इस तरह प्रेरित करें बच्चे स्वयं कर सीख जाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
जिन्दगी में काव्य हो, संगीत हो,होवें कलाएँ।
अध्ययन हो,हो सृजनता और भाषण भी सिखाएं।
हम भरें उत्साह जीवन में,नया आनंद लाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
अध्ययन हो,हो सृजनता और भाषण भी सिखाएं।
हम भरें उत्साह जीवन में,नया आनंद लाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
नींव तो हम ही बनाएँगे, महल कोई बनाए।
हम करेंगे अमिट अंकन, रंग कोई भी चढाए।
ज्ञान के अनुपम महल की आईये नींवें बनाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
हम करेंगे अमिट अंकन, रंग कोई भी चढाए।
ज्ञान के अनुपम महल की आईये नींवें बनाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
सहज भाषा-बोध हो,परिवेश से विज्ञान सीखें।
गणित की सब संक्रियाओं को बताएँ इस तरीके।
स्पष्ट हों सुकुमारमति को गणित की संकल्पनाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
गणित की सब संक्रियाओं को बताएँ इस तरीके।
स्पष्ट हों सुकुमारमति को गणित की संकल्पनाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
हाँ ,मगर विज्ञान,भाषा, गणित ही सबकुछ नहीं है।
आचरण की शुद्धता अरु मनुजता जबतक नहीं है-
तब तलक मरती रहेंगी मानवीय संवेदनाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
आचरण की शुद्धता अरु मनुजता जबतक नहीं है-
तब तलक मरती रहेंगी मानवीय संवेदनाएँ।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
हर तरफ दुष्टाचरण,भ्रष्टाचरण की बाढ़ आई।
है उचित संस्कार,नैतिक-पाठ ही इसकी दवाई।
शिक्षकों की ओर देखें आशयुत सबकी निगाहें।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
है उचित संस्कार,नैतिक-पाठ ही इसकी दवाई।
शिक्षकों की ओर देखें आशयुत सबकी निगाहें।
ज्ञान के दीपक जलाएँ और अँधियारा मिटाएँ।।
लेखक परिचय
■■■■■■■■■■
■■■■■■■■■■
नाम -उमाशंकर द्विवेदी
पद -सहायक अध्यापक
विद्यालय -प्रा०वि०अहिरौली
क्षेत्र -भलुअनी
जनपद-देवरिया
चलवाणी - ९५८०५५१४००
पद -सहायक अध्यापक
विद्यालय -प्रा०वि०अहिरौली
क्षेत्र -भलुअनी
जनपद-देवरिया
चलवाणी - ९५८०५५१४००
साहित्यिक परिचय
□□□□□□□□□□□□□□□
* पद्य ,गीत,गजल ,लेख लिखने पढने में रूचि ।
□□□□□□□□□□□□□□□
* पद्य ,गीत,गजल ,लेख लिखने पढने में रूचि ।
* ब्राह्मी,सृजन,नैसर्गिकी,अंचल भारती एवं अन्य पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं ।
* विभिन्न स्वरचित काव्य पाठ प्रतियोगिताओं में पुरस्कार प्राप्त ।
कोई टिप्पणी नहीं