बेटियां
कुछ पंक्तियां सभी बेटियों के लिए लिखी हैं बहुत दिनों बाद... अगर पसंद आए तो प्लीज लाइक करिए और यह जरूर बताइए कि कैसी लिखी हैं 😊😊😊😊😊😊
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दिन के आंगन में प्रभाती सी,
किरणों के दीप सजाती सी,
होकर देैदीप्य निकलती है
बिटिया कुछ ऐसे बढ़ती है।
सुर और ताल की सरगम सी
घाव पर बनकर मरहम सी
गर्मी में बारिश की छम छम सी
मानस के छंद के अर्थों सी
हर रोज नई कुछ लगती है
बिटिया कुछ ऐसे बढ़ती है।
नित नई नई अभिलाषा सी
ऋषियों के वेद की धारा सी
चंचल चपला से तरंगित सी
उपवन के सर में कुमुदनी सी
होठों पर बिखरी मुस्कानों सी
तरुवर की छांव सी लगती है
बिटिया कुछ ऐसे बढ़ती है।
बंसी धुन की मोहकता सी
पावन और निर्मल सरिता सी
वीरान में जीवन दर्शन सी
भक्ति गीतों की मधुरता सी
सूने मन में किलकारी सी
फुलवारी सी लगती है
बिटिया कुछ ऐसे बढ़ती है।
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अलका खरे
जनपद-झांसी
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