बच्चें
फटे कपड़ों में, सर्द मौसम में
दौड़ते हुए गरीब बच्चे
उन्हें सर्दी नहीं लगती।
उन्हें तो बस जिद है
पैसे कमाने की
दौड़ दौड़ कर
तेल का डब्बा दिखाने की
जैसे शनिदेव
उसी डिब्बे में बैठे हैं।
उन्हें सर्दी नहीं लगती
उनमें तो जज्बा होता है
कुछ पैसे कमाने का
जिम्मा होता है
घर चलाने का।
स्कूल से समय चुराते
दौड़ते भागते मुस्कुराते
सब्जी की ठेली लगाते
होटलों में थालियां सजाते
ठंडे पानी में बर्तन धोने से
नहीं गलती उनकी उंगलियां।
उन्हें तो डर होता है
उस शराबी बाप का
जो कभी सेंटा क्लोज
बना ही नहीं।
ना चॉकलेट, ना पेस्ट्री
ना प्यार की दो थपकी।
जीवन को सरल बनाना
कोई सीखे इनसे
वह भी चाहते हैं सुंदर दिखना
अच्छे कपड़े ,अच्छे जूते
और थोड़ा सा संवरना।
फटे कपड़े और सर्द मौसम
इनको भी रुलाते हैं
पर यह जाहिर नहीं करते
गरीबी को ढाल बनाकर
मजबूत बनते हैं
जिद नहीं करते।
काश इस क्रिसमस
कोई सेंटा क्लोज आकर
कुछ लम्हा जिंदगी
कुछ बूंदें खुशी
कुछ उड़ती ख्वाहिशें
बांट दे इनको।
राजकुमार और परियों सा
संवार दे इनको।
हथेली पर कुछ क्यारियां
बना दे इनके
जिनमें उम्मीदों की बारिश हो
और खुशियां उग जाएं।
✍️
अलका खरे
झांसी
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