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उद्भट प्रेम

 उद्भट प्रेम

आरंभ से ही अंत को पुकार लो ....
विजय रण में पाने को शौर्य की ललकार दो, 
बुझ गई है जो चिंगारी क्रांति की 
नव विचारों के शोलों का उसे अंगार दो ।
आरंभ से ही अंत को पुकार लो ....
दमन अत्याचारों का करने को
जम रहे लहू को ज्वलंत एक पुकार दो
उन्मुक्त हो सके निज बाधाओं से 
विचलित मन को प्रखर ऐसा विचार दो
आरंभ से ही अंत को पुकार लो ...
राग प्रलय का छेड़ दे जो 
 झनझनाती धनुष की वो टंकार दो 
मातृभूमि के कण-कण मे राग जीत का घोल दे जो
वीणा की  वो मधुर झंकार दो।
आरंभ से ही अंत को पुकार लो ....
तप्त ह्रदय शीतल करने को
सावन की वो मस्त फुहार दो
अरि मस्तक काट दे जो 
तलवार की वो चमचमाती धार दो।
आरंभ से ही अंत को पुकार लो... 
अमर कीर्ति फैले सकल विश्व में 
अभिमानी यह उपहार दो 
घर-घर गूंजे वीरों की गाथा 
क्षण सुख का वह अपरंपार दो।
आरंभ से ही अंत को पुकार लो...
भारत मां के वीर सपूतों जाग उठो अब 
स्वप्न सुनहरे साकार दो
मां भारती के चरणों में शीश झुका कर
जीवन ज्योति वार दो 
पहन वीरता का आभूषण अद्भुत
स्वयं को संवार दो 
राष्ट्र की स्वर्णिम आभा को 
निज गौरव का श्रृंगार दो।
आरंभ से ही अंत को पुकार लो...

सभी  राष्ट्रानुरागी बंधुओं को समर्पित 🙏🇮🇳

✍️
 सुकीर्ति तिवारी
सहायक अध्यापक
कम्पोजिट उच्च प्राथमिक विद्यालय करहिया, जंगल कौड़िया गोरखपुर

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