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कुछ ख्याल मन के


कम ही लोग जीवन में साथ रहते हैं
चलते हैं जो आबाद रहते हैं
भूल जाते हैं हम अपने गमों को
साथ बिताये हंसी पल याद रहते हैं
मिट जाती है एक दिन हस्ती सभी की
जमाने को जिंदादिल फसाने याद रहते हैं।

कदमों का क्या
जब चाहेंगे थम जाएगें
हम जो गए हमारी रूह के महकम जाएगें
कल तक था गुमां जिस बदन पर
आज हुआ यकीं
कभी सुपुर्द -ए-खाक हम जाएगें।

उन रूठें हुओं को कौन मनाने जाये
सच है क्या कौन बताने जाये
चलो धीरे कदमों से ही आगे बढ जाते हैं
उनके चेहरों की शिकन को
कौन मिटाने जाये।

बहुत रोई बहुत बिलखी
बहुत ही छटपटाई संस्कृति
अपना गौरवमयी इतिहास देखकर
अपने अंत पर घबराई संस्कृति।

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