ईश्वर ही रखवाला है
कभी अधर्म जब बहुत अधिक बढ़ जाता है
पाप का गागर सहसा तब फट जाता है
सृष्टि का यह अद्भुत खेल निराला है
सत्य का आख़िर ईश्वर ही रखवाला है
एक तरफ है सत्य अहिंसा की डोरी
एक तरफ है लूटमार सीनाजोरी
निर्णय करना है पथ पर किस जाओगे
न्याय के पोषक हो या पापी कहलाओगे
मिट जाता है वही जिसे लोभ चढ़ जाता है
पाप का गागर सहसा तब फट जाता है
क्षणिक करो चिंतन अन्तस् में ध्यान धरो
मनु का तन पाये हो मनु सा काम करो
खुले करों से जीव यहाँ सब आते हैं
खुले करों से ही सब उड़ जाते हैं
हमसे पहले बहुत वीर भी आये
बड़े भाग्य से शव बसन ही पाये
मानवता को रौंद कोई चढ़ जाता है
पाप का गागर सहसा तब फट जाता है।।
✍️
कविराज' दिग्विजय सिंह
शिक्षक-प्रा०वि० दलपतपुर
जनपद-गोंडा
कोई टिप्पणी नहीं