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प्रेम रस


प्रेम रस

जीवन पथ अति कठिन कंटक घनेरे।
प्रेम रस का पान कर मन मधुप मेरे।।
यह समूची सृष्टि ऐषणित तंत्र है,
प्रेम ईशाकार परम स्वतंत्र है।
पुद्गल अणु परमाणु स्नेहा सिक्त हैं,
प्रेम ही इस जगत का अभीष्ट है।।
प्रेम अनुबंधित फिरे चौरासी फेरे।।
प्रेम रस०
मन बुद्धि चित्त अहं परिछिन्नता है,
प्रेम तेरे मनस की निजरूपता है।
ज्ञान भक्ति वैराग्य अनुपम शक्ति है,
प्रेम इनसे श्रेष्ठतर है, मुक्ति है।।
चिद विलासित है सदा, तम कितने घेरे।।
प्रेम रस०
धर्म अर्थ काम मोक्ष का सार है यह
बसंत का तरंग दिव्य श्रृंगार है यह।
क्या अविद्या परा अपरा ढूंढ़ता है,
प्रेम रस तेरे ही अन्दर ठहरता है।।
प्रेम रस धुल देगा मन के कलुष तेरे।।
प्रेम रस०।।
विश्वास के पाताल का है यह जलज,
त्याग निष्ठा समर्पण करता सहज।
प्रेम रस का दीप जग उजियार करता,
निष्ठुर प्रियतम तू भी सच्चा प्यार करता।।
प्रेम रस है अशेष, पी सन्ध्या सवेरे‌।।
प्रेम रस०।।

✍️
शेषमणि शर्मा'शेष'
प्रयागराज

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