लड़कियां
लड़कियां
चुल्हपोतनी होती तुम "
लड़कियाँ जो पढ़ना चाहती थीं
कहा गया जरूरत ही क्या ?
जिसने हाथ जोड़े ,अम्मा से, बाबा से ,भाई से
उनसे कहा गया.... हैसियत नहीं हमारी
लड़के धरनी धरन हैं
कुल की नाव के खेवनहार
सो इन्हें ही पढ़ना लिखना है
जिन लड़कियों ने जिद की
खाना पीना छोड़ा ,
आँसू बहाये
महीनों दुख में रहीं
उनसे कहा गया जब पढ़ना ही है तो मैं जो कहूँ वह विषय पढो
स्कूल चुना गया
जहाँ फीस न लगे
घर से दूरी कम हो
मुश्किल किताबें लड़की के बस्ते में थीं
और घर से स्कूल तक की सड़क की आँख में क्लिष्ट सूत्र थे
"ये लड़की डी यम बनने चली है...!"
हा ...!हा ...! हा ..!
"ये आजाद हुई लड़कियाँ मुक्त इलेक्ट्रान बन जाती हैं!"
हा ..!हा..!है..!
नींबू ,सेब , सन्तरे की नाप लेते बोल
लड़की के कान में पिघला काँच घोलते
गली चौराहे पर उगी दग्ध लाल आँखे ,
उसके सीने में धतूरे के बीज रोपती रहीं
लड़की स्कूल की चटाई पर घण्टो किताब खोले बैठती लेकिन स्कूल में उस विषय के अध्यापक ही ना होते ,
लड़कियाँ जो स्कूल तक गईं
उनके रास्ते ऊँची पहाड़ी की कठिन चढ़ाई थे
उनसे कहा गया जब पढ़ना है तो अपने दम पर पढो कोचिंग ट्यूशन की जरूरत क्या
अम्मा ने कहा कहीं आना जाना मत
लड़के तुम्हारे दोस्त न हों कभी
बस्ते में जो किताबें थीं उन में लिखे अक्षरों के अर्थ उन्हें खुद ढूँढने थे
कुछ असफल हुईं
उनके मां बाप गंगा नहाये
जल्दी ही ब्याह दी गईं
जो औसत आई उन्होंने जिदें छोड़ दी
उनसे जल्द छुटकारा मिला
कुछ ने लड़के से दोस्ती की
प्रेम किया
वे घर से भागीं . !
पँखे के सहारे फंदे पर लटकीं..!
या घर के किसी कोने में उनको साँप काटा...मरी हुई मिलीं
कुछ जो पत्थर के गर्भ से पानी निकालने का माद्दा रखती थीं
उन्होंने अक्षरों के अर्थ खोज लिए
एक एक प्रश्न को हल किया
उनके परीक्षा परिणाम उम्दा आये
घर भर का सीना चौड़ा होता गया
इन बेटियों ने आगे पढ़ने की छूट माँगी
और तमाम शर्तों के तहत पैरोल पर छोड़ी गईं
वे कालेज तक गईं
इनकी मोहब्बत किताबें थीं
इनके सपने में खुद की कमाई के चार पैसे थे
और अपने बूते बना एक घर था
ये साल दर साल पास करती रहीं मुश्किल परीक्षाएं
बबूल के गाँव में जन्मी बेटियाँ ने
पाँव छेदते काँटों को ठोकर मारी थी
जब इन्होंने नौकरी की और
थोड़ा तन कर चलीं ।
इनसे कहा गया......
ये जो कुर्सी पर बैठी हो ... मेरी बदौलत.!
अच्छा खा पहन रही हो...
मेरी बदौलत.!
हमने पढाया न होता तो चुल्हपोतनी होती तुम
और कोई धनिया मिर्चा बेचने वाला पति तुम्हारा ।
ये पँख कतरने वालों की कैंची की धार बड़ी तेज है।
कभी न कभी इस पर धर ही देते एक लड़की के उड़ान भरते परों को।
✍️
प्रतिभा श्रीवास्तव
आजमगढ़ उत्तर प्रदेश
यथार्थ को दर्शाती कविता
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