वक़्त
वक़्त
वक़्त घड़ी नहीं तलवार है,
तलवार भी दुधार है।
वक़्त शीशा है, हर एक फर्द का
वक़्त मरहम है ,हर एक दर्द का
वक़्त वो शै है, जिस पर सबका उधार है
वक़्त घड़ी नहीं तलवार है ,
तलवार भी दुधार है ।
वक़्त शहंशाह है, वक़्त कामिल है
वक़्त के नीचे तो,सारी दुनिया शामिल है
वक़्त की जानिब ऐ साजन ,
हर रोक बेकार है
वक़्त घड़ी नहीं तलवार है ,
तलवार भी दुधार है ।
वक़्त अमोल ऐसा है,
इसका मोल न पैसा है
वक़्त रुके न रोके कोई
वक़्त मुसाफिर ऐसा है
गुज़रे वक़्त की कीमत में
दुनिया का सब ज़र बेकार है ।
वक़्त घड़ी नहीं तलवार है ,
तलवार भी दुधार है ।
ना वक़्त की लाठी खाली है
वक़्त की मार निराली है
वक़्त का जो है हिसाब
सब के खाते एक किताब
दखल वक़्त का जीवन में
सुन ले बन्दे हर हर बार है
वक़्त घड़ी नहीं तलवार है ,
तलवार भी दुधार है ।
कर फूँक फूँक कर काम कितना
मिलेगा वो ही,तय वक़्त करा है जितना
सही गलत करने के
वक़्त पे ज़रिए हज़ार हैं
वक़्त घड़ी नहीं तलवार है ,
तलवार भी दुधार है ।
ज़िन्दगी की राहों में
चाहतों की चाहों में
दुख-ओ-ग़म की धूप में
चैन-ओ-सकूँ की छाँव में
वक़्त ही यारा साथी सबका
ये ही यार गद्दार है
वक़्त घड़ी नहीं तलवार है ,
तलवार भी दुधार है ।
आज का बोया आज कटे न
मिले न हाथों हाथ
कभी ग़म मिलें कभी खुशी मिलेगी
बन कर के सौगात
कभी हार की बदली है
कभी जयहार है
वक़्त घड़ी नहीं तलवार है ,
तलवार भी दुधार है ।
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