माँ
माँ "मदर्स डे " नहीं है। माँ कोई आयोजन भी नहीं है। माँ विचार नहीं हो सकती। माँ एक अनुभूति है। अनुभूति और विचार एक साथ नहीं हो सकते। घनीभूत होती अनुभूति आह्लाद का ऐसा चरमपद है जहाँ आत्मा विभोर होकर ऐसी अवस्था को प्राप्त करती है जहाँ विचार नहीं सुखानुभूति होती है। उसकी सत्ता का आभास होता है। अनुभूति की विरलता , उसकी स्मृति विचार को जन्म देती है। माँ की गोद में बैठकर दुग्ध पान करते शिशु को देखो! क्या माँ मदर्स डे है? नहीं। वह जिंदगी है, उसकी जिंदादिली है। माँ स्मृति की कौंध उन्हीं के लिए है जो उसे जीवन में कहीं पीछे छोड़ आए हैं नहीं तो माँ आज भी संगति है, आशीष है, सुरक्षा घेरा है। मदर्स डे के विचार वाहक चाहे तो उसे एक मिथक मानें हमारे लिए तो माँ आज भी दुनिया की सबसे विशाल जीवंत मूरत है। माटी की सौंधी महक है, आँखों की चमक है।
माँ
---------------------------------
सिर पर बाँध सरकारी ताज,
दिनभर करते राज -- काज,
कितनी बातें, कितने लोग,
कितनी राशि, कितना उपभोग
गुणा भाग और सबका योग ।
ठहरें हैं रिश्ते, दौड़ती है जिंदगी
साल्व आउट और पेन्डिंग,
दिनभर भागदौड़,
बहुत है वर्कलोड,
ढलती है शाम,
होकर निढाल,
दिमाग हो जाता
साइलेंट मोड़।
पूछती है माँ,
आ गए बेटा!
न होठों में हलचल,
न जीभ में कम्पंन,
उत्तर में सुनाई देती है
एक शब्द हीन आवाज
हूँ ।
ये विडम्बना किसकी है? माँ की, बेटे की या जीवन संघर्ष की।
माँ
---------------------------------
सिर पर बाँध सरकारी ताज,
दिनभर करते राज -- काज,
कितनी बातें, कितने लोग,
कितनी राशि, कितना उपभोग
गुणा भाग और सबका योग ।
ठहरें हैं रिश्ते, दौड़ती है जिंदगी
साल्व आउट और पेन्डिंग,
दिनभर भागदौड़,
बहुत है वर्कलोड,
ढलती है शाम,
होकर निढाल,
दिमाग हो जाता
साइलेंट मोड़।
पूछती है माँ,
आ गए बेटा!
न होठों में हलचल,
न जीभ में कम्पंन,
उत्तर में सुनाई देती है
एक शब्द हीन आवाज
हूँ ।
ये विडम्बना किसकी है? माँ की, बेटे की या जीवन संघर्ष की।
कोई टिप्पणी नहीं