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अब रण होगा...

अंगार का तुम श्रृंगार करो
अब रण होगा।
कोटि शूल तन मन बेधेंगे ,
पथ कन्टक से छिल जायेंगे,
चिंघाड़ करो नभ कम्पित हो,
इस बार बड़ा भीषण होगा।
अब रण होगा।

ये तख्त ताज हिल जाएंगे,
कुत्सित विचार धरती में मिल जाएंगे,
कुछ लोभ मिलेगा,
कुछ क्षोभ मिलेगा,
पल पल समर भूमि बदलेगी,
पर अटल,अचल पग अपना हर क्षण होगा,
इस बार बड़ा भीषण होगा।
अब रण होगा।

स्वप्न इन्हें दहलायेंगे,
अभिमान सकल मिट जायेंगे,
विजय तिलक लेना ही है,
इस बार यही बस प्रण होगा।
अब रण होगा।
अब रण होगा।

■ पुरानी पेंशन संघर्ष को समर्पित।
◆ प्रभात "गोरखपुरी"

✍ लेखक 
प्रभात त्रिपाठी 'गोरखपुरी'
(स0 अ0) 
पू मा विद्यालय लगुनही गगहा,
गोरखपुर
📱 9795524218


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