तय है मंजिल पाना
तय है मंजिल पाना
______________
कूद पड़ी हैं
आंदोलन में
मिलकर सारी कलमें
उठो चलो अब
बिगुल बजा
धिक्कार है बैठे रहना
कायरता ही
कहलायेगी
मौन यहाँ सब सहना
आज दिखा दो
ताक़त कितनी
है एका के बल में
रख हाथों पर
हाथ यहाँ कब-
कोई कुछ पाता है
कर्मभूमि पर
अपना जीवन
संघर्षों की गाथा है
अबकी बार
नहीं है पड़ना
यहाँ किसी के छल में
राह भरी हों
काँटों से पर
हमने है अब ठाना
कदम बढ़ाते
जाएँ हमसब
तय है मंजिल पाना
दृढ़निश्चय के
दम पर ही-
इतिहास बदलता पल में
रचनाकार
योगेन्द्र प्रताप मौर्य,
प्राथमिक विद्यालय मंगरा,
बरसठी,जौनपुर।
कोई टिप्पणी नहीं