शिक्षक डायरी 22/07/2015
शिक्षक डायरी दिनाँक 22-7-2015 वुधवार
आज सुबह से ही मन चिंतित था स्कूल खोलते समय दूधिया का इंतज़ार था बच्चे साफ सफाई कर रहे थे पर मेरी आँखे स्कूल के गेट पर लगी थी ।प्रार्थना में भी मन नहीं लगा और लगता भी कैसे अभी तक दूध नहीं आया था ।कल छुट्टी के समय सड़क से निकलते एक दूधिया को 40 रुपये किलो के हिसाब से 20 किलो दूध के 800 रुपये दिए थे और उसका मोबाइल नंबर ले लिया था पर सुबह से उसका फोन बंद था ।कल संकुल प्रभारी जी ने चेतावनी जारी कर कहा था कि बुधवार को मध्यान्ह भोजन की जिला स्तरीय चेकिंग है दूध सुबह ही पिला देना ।
स्कूल में 98 छात्रों पर हम दो ही अध्यापक थे ।मैं इंचार्ज प्रधानाध्यापक था ,इसलिए आज मेरे प्राण कंठ तक आ चुके थे । वैसे तो मैं रोज ही तनावग्रस्त रहता हूँ क्योंकि छात्र प्रोफाइल में वादन के हिसाब से क्रिया कलाप भरना होता है और 2 लोग बमुश्किल ही 5 कक्षाओं को घेरकर शांत भर रख पाते है इसलिए सब फ़र्ज़ी भरना पड़ता है ,मन को तकलीफ होती है पर नौकरी में शासन के आदेश का पालन और कागज की पूर्ती अनिवार्य अंग है ।इसलिये प्रातः आधा घंटा 5 कक्षाओं की हाजिरी और स्टूडेंट प्रोफाइल ,मिड डे रजिस्टर आदि भरने में व्यतीत होता है और प्रथम पीरियड औपचारिकता ही होता है ।
खैर बड़े इंतज़ार के बाद 8:30 पर दूध आया तो कुछ राहत हुयी ।मैंने बच्चों को कक्षा में छोड़कर तुरंत रसोइया से दूध गर्म करने को रखवा दिया और स्वयं भी वही बैठ गया, मन में दहशत थी कि अगर दूध फट गया तो 800 रुपये तो जायेगें ही ,कार्यवाही मुफ़्त में हो जायेगी ।खैर दूध सकुशल 9:00 बजे गर्म हो पाया तो सहायक से कहकर बच्चों को लाइन लगवा दी और वितरण प्रारम्भ कर दिया जो 9:30 तक पूरा हो सका और बच्चे पुनः कक्षा में पहुँच गए।पर दूध के चक्कर में खाना लेट हो गया क्योंकि गैस एक ही थी ।रसोइया गाँव के थे उन्होंने कोफ्ते कभी बनाये नहीं थे इसलिए मुझे ही उनके साथ लगना पड़ा ।इधर हम कोफ्ते बनाने का हुनर दिखा रहे थे ,उधर हमारे सहायक 5 कक्षाओं के बच्चे घेरनें में पसीना छोड़ रहे थे ।जैसे तैसे 11:30 तक कोफ्ते और चावल बन पाये तो बच्चों को हाँथ धोने के लिए लाइन लगवा दी आज हम निरीक्षण में कोई कमी नहीं होने देना चाहते थे हाँथ धुलवाने की प्रक्रिया में12:00 बज गए अब बारी कोफ्ता चाबल खिलाने की थी सो बच्चों को पंक्तिबद्ध बिठाकर खिलाने में हमें कुल आधा घंटा लगा ।
मेरा ध्यान सब काम के बाबजूद मैन गेट पर था किस्मत अच्छी थी कि निरीक्षण करने वाले अफसर अभी तक नहीं आये थे ।इधर12:30 बजे खाना पूरा हुआ और उधर अधिकारी लंबा निरीक्षण प्रपत्र ले कर आ धमके ।बच्चे झुण्ड में नल पर इकट्ठे थे सो अधिकारी बड़े नाराज हुए कि खाना इतना लेट कैसे ।पर अंत में मेरे घिघयाने पर मान गए और अच्छी रिपोर्ट बना दी ।निरीक्षण पूरा होते होते 1:00 बज चुके थे इसलिए बच्चों की छुट्टी कर दी गयी ।मैंने और सहायक ने अपनी शिक्षक डायरी निकाली और टाइम टेबल और पाठ्यक्रम सामने रखकर वादन के हिसाब से पढाई करवाकर डायरी पूरी कर दी ।एक दिन और और बिना कार्यवाही के पूरा होने पर मन बड़ा हल्का था । सब कुछ शासन की मंशा के अनुरूप कर दिखाने की हसरत में अपने जमीर को मारने और झूंठ के 6 घंटे शिक्षक डायरी में दर्ज़ हो चुके थे।क्योंकि ऊपर भोगा गया पल डायरी में लिखने का अधिकार हमें अभी तक ना मिला है ।
आज सुबह से ही मन चिंतित था स्कूल खोलते समय दूधिया का इंतज़ार था बच्चे साफ सफाई कर रहे थे पर मेरी आँखे स्कूल के गेट पर लगी थी ।प्रार्थना में भी मन नहीं लगा और लगता भी कैसे अभी तक दूध नहीं आया था ।कल छुट्टी के समय सड़क से निकलते एक दूधिया को 40 रुपये किलो के हिसाब से 20 किलो दूध के 800 रुपये दिए थे और उसका मोबाइल नंबर ले लिया था पर सुबह से उसका फोन बंद था ।कल संकुल प्रभारी जी ने चेतावनी जारी कर कहा था कि बुधवार को मध्यान्ह भोजन की जिला स्तरीय चेकिंग है दूध सुबह ही पिला देना ।
स्कूल में 98 छात्रों पर हम दो ही अध्यापक थे ।मैं इंचार्ज प्रधानाध्यापक था ,इसलिए आज मेरे प्राण कंठ तक आ चुके थे । वैसे तो मैं रोज ही तनावग्रस्त रहता हूँ क्योंकि छात्र प्रोफाइल में वादन के हिसाब से क्रिया कलाप भरना होता है और 2 लोग बमुश्किल ही 5 कक्षाओं को घेरकर शांत भर रख पाते है इसलिए सब फ़र्ज़ी भरना पड़ता है ,मन को तकलीफ होती है पर नौकरी में शासन के आदेश का पालन और कागज की पूर्ती अनिवार्य अंग है ।इसलिये प्रातः आधा घंटा 5 कक्षाओं की हाजिरी और स्टूडेंट प्रोफाइल ,मिड डे रजिस्टर आदि भरने में व्यतीत होता है और प्रथम पीरियड औपचारिकता ही होता है ।
खैर बड़े इंतज़ार के बाद 8:30 पर दूध आया तो कुछ राहत हुयी ।मैंने बच्चों को कक्षा में छोड़कर तुरंत रसोइया से दूध गर्म करने को रखवा दिया और स्वयं भी वही बैठ गया, मन में दहशत थी कि अगर दूध फट गया तो 800 रुपये तो जायेगें ही ,कार्यवाही मुफ़्त में हो जायेगी ।खैर दूध सकुशल 9:00 बजे गर्म हो पाया तो सहायक से कहकर बच्चों को लाइन लगवा दी और वितरण प्रारम्भ कर दिया जो 9:30 तक पूरा हो सका और बच्चे पुनः कक्षा में पहुँच गए।पर दूध के चक्कर में खाना लेट हो गया क्योंकि गैस एक ही थी ।रसोइया गाँव के थे उन्होंने कोफ्ते कभी बनाये नहीं थे इसलिए मुझे ही उनके साथ लगना पड़ा ।इधर हम कोफ्ते बनाने का हुनर दिखा रहे थे ,उधर हमारे सहायक 5 कक्षाओं के बच्चे घेरनें में पसीना छोड़ रहे थे ।जैसे तैसे 11:30 तक कोफ्ते और चावल बन पाये तो बच्चों को हाँथ धोने के लिए लाइन लगवा दी आज हम निरीक्षण में कोई कमी नहीं होने देना चाहते थे हाँथ धुलवाने की प्रक्रिया में12:00 बज गए अब बारी कोफ्ता चाबल खिलाने की थी सो बच्चों को पंक्तिबद्ध बिठाकर खिलाने में हमें कुल आधा घंटा लगा ।
मेरा ध्यान सब काम के बाबजूद मैन गेट पर था किस्मत अच्छी थी कि निरीक्षण करने वाले अफसर अभी तक नहीं आये थे ।इधर12:30 बजे खाना पूरा हुआ और उधर अधिकारी लंबा निरीक्षण प्रपत्र ले कर आ धमके ।बच्चे झुण्ड में नल पर इकट्ठे थे सो अधिकारी बड़े नाराज हुए कि खाना इतना लेट कैसे ।पर अंत में मेरे घिघयाने पर मान गए और अच्छी रिपोर्ट बना दी ।निरीक्षण पूरा होते होते 1:00 बज चुके थे इसलिए बच्चों की छुट्टी कर दी गयी ।मैंने और सहायक ने अपनी शिक्षक डायरी निकाली और टाइम टेबल और पाठ्यक्रम सामने रखकर वादन के हिसाब से पढाई करवाकर डायरी पूरी कर दी ।एक दिन और और बिना कार्यवाही के पूरा होने पर मन बड़ा हल्का था । सब कुछ शासन की मंशा के अनुरूप कर दिखाने की हसरत में अपने जमीर को मारने और झूंठ के 6 घंटे शिक्षक डायरी में दर्ज़ हो चुके थे।क्योंकि ऊपर भोगा गया पल डायरी में लिखने का अधिकार हमें अभी तक ना मिला है ।
शिक्षक पीड़ा जो फिलहाल जारी रहेगी....
जवाब देंहटाएंशिक्षक पीड़ा जो फिलहाल जारी रहेगी....
जवाब देंहटाएंएक अध्यापक की भावनाओं का सही चित्रण
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअपने सहज परिवेश से इतर तो शेर भी शेर नहीं रह पाता ।
जवाब देंहटाएंसर्कस में फंस जाने पर उसे भी एक दिन करतब सीखने पर मजबूर होना पड़ेगा ।
आज शिक्षा का लगभग सारा तंत्र ही तान्त्रिकों के हाथ में है।ऐसे में कागज़ कलम के असली शेरों के पास विकल्पों का संकट है।
हंटर से केवल तकनीकी रूप से 'प्रशिक्षिण' दिया जा सकता है,'शिक्षण' नहीं ।वास्तविक शिक्षा प्रोत्साहन और प्रेरणा से दी जा सकती है।
जो शिक्षा की दशा सुधारना चाहते हैं उन्हें यह बात नहीं भूलना चाहिए कि "You can take the horse to the water, but you cannot make it drink."