कोई टीचर समझता है...
कोई टीचर समझता है कोई लोफर समझता है।
गली का श्वान भी हमको निजी नौकर समझता है।
गली का श्वान भी हमको निजी नौकर समझता है।
चलूँ जब थाम कर थैला फटीचर जैसे गलियों में,
समझता है कोई पागल कोई बेघर समझता है।
समझता है कोई पागल कोई बेघर समझता है।
सभी हाक़िम हमीं से अब खिलौना जानकर खेलें,
ख़ुदा ये दर्द क्यों मेरा बड़ा कमतर समझता है।
ख़ुदा ये दर्द क्यों मेरा बड़ा कमतर समझता है।
मिली है ख़ाक़ में इज़्ज़त गई तालीम गड्ढे में,
जुदा होकर हमारे से क़लम डस्टर समझता है।
जुदा होकर हमारे से क़लम डस्टर समझता है।
बड़े उस्ताद बनते थे चले थे राह दिखलाने,
ज़माना ही हमें अब राह की ठोकर समझता है।
ज़माना ही हमें अब राह की ठोकर समझता है।
सियासी खेल में बुनियाद ही कमज़ोर कर बैठे,
न ये नेता समझता है न ही वोटर समझता है।
ग़ज़लकार- निर्दोष कान्तेय
न ये नेता समझता है न ही वोटर समझता है।
बहे जाओ इसी रौ में, न कर निर्दोष तू शिकवा
हमारा दिल ये बेचारा यही रोकर समझता है।
ग़ज़लकार- निर्दोष कान्तेय
ह्ह्ह्हह्ह हकीकत लिख दी आपने निर्दोष जी......
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अशोक जी & तनु जी !
जवाब देंहटाएं😊😊
Very nice
जवाब देंहटाएंक्या दर्द वयां किया है वाह
जवाब देंहटाएंक्या दर्द वयां किया है वाह
जवाब देंहटाएंक्या बात है सर
जवाब देंहटाएंआपने तो हकीक़त ही बयां कर दिया
धन्यवाद |