विदाई की वेला
विदाई की वेला
विदाई की वेला
परिवर्तन की वेला
कितनी ही बार
जिंदगी में आती है
कभी बचपन विदा
कभी जवानी विदा
प्रात: विदा
सायं विदा
किसका मिला
साथ सदा
परिवर्तन नियम
जिंदगी का
रूप परिवर्तन
काया परिवर्तन_
कार्य परिवर्तन
होते रहते हैं
इनको ही हम
विदाई कहते हैं
संसार में कुछ भी
कभी खत्म
नही होता है
रूप परिवर्तन
होता रहता है
शिक्षक की वाणी
शिक्षक का आचरण
अमिट होता है
क्या शिक्षक विदा_
हो सकता है?
अरे!गुरू तो
मरता भी
है कहाँ ?
अपने छात्रों के
मन-मस्तिष्क में
रहता है
सदा बना
शिष्यों के रूप
में अमर
हो जाता है
शिष्यों के जीवन
का कर्ता बन
जाता है
सर्वपल्ली राधाकृष्णनन्
क्या हमारे
बीच नही
कलाम की ऊर्जा
का हमें क्या
होता अनुभव नही
परिवर्तन के नर्तन
को आत्मसात
करना कभी- कभी
मुश्किल होता
इसमें अश्रु कणों
सम्मिश्रण भी
होता है
असहनीय मालूम
होता है ये
परिवर्तन
पर इस प्रवाह
को करना
ही पड़ता
है आत्मसात
समय का प्रवाह
यूँ ही बहता है
समय के प्रवाह_
के साथ हम
भी बहे
दुख, दर्द
फिर कहाँ रहे
हर प्रवाह का
हम करें स्वागत
स्वस्थ, सुंदर हो
सबका आगत
स्वस्थ, सुंदर हो
सबका आगत
✍️
प्रतिभा भारद्वाज
अलीगढ़
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