दिल फिर से बसाया है
बहुत वीरान था ये दिल इसे फिर से बसाया है
तुम्हारी चाहतों से ही ये गुलशन जगमगाया है
तुम्हारी चाहतों से ही ये गुलशन जगमगाया है
गुलों की बेरुखी से ख़ार ग़म में डूब जाते हैं
यही वो पीर है जिसको भ्रमर ने गुनगुनाया है
यही वो पीर है जिसको भ्रमर ने गुनगुनाया है
इसे नफ़रत कहूँ उसकी कि समझूँ लाज की लाली
मुझे देखा तो इक चेहरा अचानक तमतमाया है
मुझे देखा तो इक चेहरा अचानक तमतमाया है
दग़ा ईमान हो जिसका जफ़ा फ़ितरत हो जिस शै की
कहा उसको फ़रेबी तो सितमगर तिलमिलाया है
कहा उसको फ़रेबी तो सितमगर तिलमिलाया है
रहा जो दश्त में तन्हा, सहमकर इक ज़माने से
नदी का साथ पाकर वो भी झरना मुस्कुराया है
नदी का साथ पाकर वो भी झरना मुस्कुराया है
- पुष्पेन्द्र 'पुष्प'
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