पुराने वक़्त का अहसास
सरकार ने आतंकबादी गतिविधियों के मद्देनजर इंटरनेट सेवा को एक सप्ताह के लिये बाधित कर दिया था।फोन का अलर्ट सुप्त अवस्था में जा चुका था। पर आदतन बार बार ध्यान फ़ोन की तरफ जाता उसे उठाकर देखता फेसबुक और व्हाट्सएप्प चेक करता और फिर याद आता, अरे अभी तो इंटरनेट पर बैन है। बैन का पहला दिन अजब सी बेचैनी से कटा ऐसा लग रहा था जैसे कोई प्रेमिका छोड़कर चली गयी हो। हालाँकि मेरी उम्र 40 पार कर गयी थी पर आज दर्द और तड़प का अहसास 20 वर्ष के नवयुवक जैसा था। समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर क्या छिन गया है। उस पहले दिन के 24 घंटे एक सप्ताह जैसे लंबे मालूम हुए ।सुबह से शाम तक निठल्ले घूमते रहे।शाम को अनायास उस नुक्कड़ की याद आ गयी जहाँ हम छः दोस्त अक्सर इकट्ठे होते थे और घंटो गप्पे मारते थे कभी कभी हमारी बहस लंबी हो जाती और मामला लड़ाई तक पहुँच जाता पर अगली शाम हम सब फिर इकट्ठा हो जाते। आज जब फिर से वहां पहुँचा तो वहां सब बदला सा नजर आया हालांकि चाय बाला अभी भी वहीँ था पर दुकान खाली और वीरान थी और बगल में नया पिज़्ज़ा हट गुलज़ार हो चुका था। चाय बाला मुझे देखकर एकदम चिल्लाया अरे शेखर बाबू । आज आपको हमारी दुकान की याद कैसे आ गयी ,उसकी आँखों में ख़ुशी के साथ नमी भी थी। मैं भी हतप्रभ था कि 10 वर्ष बाद भी उसे मेरा नाम याद है जबकि मैं उसका नाम भूल चुका था।पर उसका शेखर बाबू कहना कही न कही दिल में अंदर तक उतर गया।एक कप चाय पीकर उसे कल दुबारा आने को कह मैं वहां से बापस घर आ गया।
अगले दिन की सुबह भी कुछ खास नहीं थी। जब सुबह उठकर आदतन व्हाट्सएप्प चेक किया तो कोई मेसेज ना देखकर एकदम चौंक गया फिर अपनी बेबकूफी पर मुस्कराया। मोबाइल वही छोड़ बिस्तर से बाहर निकल टेरेस पर आ गया सुबह की हवा काफी खुशनुमा थी शायद कोई 3 वर्ष बाद मैं इतने सुबह बिस्तर से बाहर निकला था। ताज़ी हबा के झोंके एक झटके में मुझे अपने अतीत तक खींच ले गए।कुछ पुरानी यादें दिमाग में टकराने की असफल सी कोशिश करने लगीं ,एक अजब सा सुखद अहसास हो रहा था। मैं सोच रहा था आग लगे व्हाट्सएप्प का जो इतने दिन से मैं रजाई में घुसे घुसे अपनी प्यारी सुबह को बर्बाद कर रहा था।
आज ऑफिस में भी रोज की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही समय मिला। सारा काम निपटाने के बाद भी लंच से आधे घंटे पहले ही फ्री हो गया। समय बच गया तो कैंटीन में आकर बैठ गया हमारे साथी भी आज जल्दी फ्री हो गए थे जब सब इकट्ठा हुए तो 10 मिनट में ही हमारे ठहाकों से कैंटीन गुलजार हो गयी।हालाँकि ऐसे ठहाके वर्षो पहले इस कैंटीन में रोज लगते थे पर सोशल मीडिया ने पिछले कुछ वर्षो में हमारे कामकाजी घंटो में से बहुत सारे मिनट चुरा लिए थे उस समय की भरपाई हम गधों की तरह काम करके पूरा करते थे पर सरकार की इमरजेंसी ने आज फिर हमें पुराने वक्त को वापस किया था।
ऑफिस के बाद शाम को काफी वक्त सोशल मीडिया को देने की एक आदत सी बन गयी थी रोज लगभग 2 घंटे हम अपने 20 से अधिक ग्रुप और फेसबुक पर देकर अपना सोशल स्टेटस अपडेट रखते थे पर आज वो दो घंटे काटने की चिंता थी।समय ज्यादा था सो बच्चों को आइसक्रीम का ऑफर दे दिया उसके बाद तो बच्चों की उमंग देखकर ऐसा लगा कि सारे जन्नत की खुशियां बच्चों को एक साथ मिल गयी हो ,लगे हाथों पत्नी को भी साथ ले लिया। गए थे आइसक्रीम खाने और लौटे डिनर करके।पर आज हम परिवार के साथ बहुत हंसे थे शायद कई वर्षों बाद ऐसा हुआ था।आज मोबाइल पर कोई मेसेज नही आया और हमारी मस्ती में भी कोई ब्रेक नहीं लगा था। रात को भी हम रोज की अपेक्षा जल्दी बिस्तर पर जा चुके थे बच्चे भी थककर जल्दी सो गए।रोज रात 11 से पहले सोने की आदत ना थी इसलिए नींद अभी दूर थी पत्नी भी जाग रही थी मोबाइल चुप था हम दोनों बातें करते करते अपनी पहली मुलाकात तक जा पहुँचे।सच में आज का दिन तो बहुत अच्छा था।
दो दिन बाद सोशल मीडिया के वगैर रहने की आदत सी पड़ने लगी। शाम का समय मोहल्ले के लोगों के साथ या माता पिता या पुरानी चाय की दुकान पर दोस्तों की गप्पों में बीतने लगा खुशियां फिर बापस आ रहीं थी।मोहल्ले के लोगों से मुलाकात में नयी नयी जानकारी होने लगी। किशोर बच्चों के नए राज पता लगे।माँ बापू के साथ बैठने से स्नेह भरे हाँथ का स्पर्श पुनः मिला।पत्नी अब पहले से ज्यादा ऊर्जावान दिख रही थी। बच्चों को उनका समय मिलने से उनकी मुझसे दूरियां घटने लगीं।ऑफिस में भी सब मस्त थे। एक सप्ताह में ही हम सब वर्चुअल दुनियां के भ्रम को तोड़कर अपनी वास्तबिक दुनियां में आ चुके थे।
शाम को टीवी में बताया गया कि सोमबार से सरकार इंटरनेट पर लगी रोक हटा लेगी।मैंने सोचा चलो इंटरनेट की आजादी फिर मिलेगी पर रात भर ये सोचता रहा कि ये एक सप्ताह जो मैंने जी लिया बो शायद एक दशक से नहीं जी पाया था। सोमबार सुबह 6 बजे व्हाट्सएप्प का पहला मेसेज आया और मेरा हाँथ नींद में ही मोबाइल की तरफ बड़ा और एकाएक रुक गया । ये एक कठिन फैसला था दिल और दिमाग का अंतर्द्वंद।वर्चुअल और वास्तबिक की लड़ाई। सोशलमीडिया के वर्षों से बनाये साम्राज्य के पतन का डर। अनजाने अपनों के खोने का गम। पर एक सप्ताह से हँसते बच्चे, अपनों की तरह मिलते पड़ोसी, खुश बीबी और माता पिता ,चाय की दुकान पर दोस्तों की मस्ती ने वर्चुअल साम्राज्य के समाज पर विजय पा ली।
व्हाट्स ऐप्प और फेसबुक मोबाइल से बाहर जा चुके थे और गैलरी खुशियों के रंगीन छाया चित्रों से भर्ती जा रही थी।
अगले दिन की सुबह भी कुछ खास नहीं थी। जब सुबह उठकर आदतन व्हाट्सएप्प चेक किया तो कोई मेसेज ना देखकर एकदम चौंक गया फिर अपनी बेबकूफी पर मुस्कराया। मोबाइल वही छोड़ बिस्तर से बाहर निकल टेरेस पर आ गया सुबह की हवा काफी खुशनुमा थी शायद कोई 3 वर्ष बाद मैं इतने सुबह बिस्तर से बाहर निकला था। ताज़ी हबा के झोंके एक झटके में मुझे अपने अतीत तक खींच ले गए।कुछ पुरानी यादें दिमाग में टकराने की असफल सी कोशिश करने लगीं ,एक अजब सा सुखद अहसास हो रहा था। मैं सोच रहा था आग लगे व्हाट्सएप्प का जो इतने दिन से मैं रजाई में घुसे घुसे अपनी प्यारी सुबह को बर्बाद कर रहा था।
आज ऑफिस में भी रोज की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही समय मिला। सारा काम निपटाने के बाद भी लंच से आधे घंटे पहले ही फ्री हो गया। समय बच गया तो कैंटीन में आकर बैठ गया हमारे साथी भी आज जल्दी फ्री हो गए थे जब सब इकट्ठा हुए तो 10 मिनट में ही हमारे ठहाकों से कैंटीन गुलजार हो गयी।हालाँकि ऐसे ठहाके वर्षो पहले इस कैंटीन में रोज लगते थे पर सोशल मीडिया ने पिछले कुछ वर्षो में हमारे कामकाजी घंटो में से बहुत सारे मिनट चुरा लिए थे उस समय की भरपाई हम गधों की तरह काम करके पूरा करते थे पर सरकार की इमरजेंसी ने आज फिर हमें पुराने वक्त को वापस किया था।
ऑफिस के बाद शाम को काफी वक्त सोशल मीडिया को देने की एक आदत सी बन गयी थी रोज लगभग 2 घंटे हम अपने 20 से अधिक ग्रुप और फेसबुक पर देकर अपना सोशल स्टेटस अपडेट रखते थे पर आज वो दो घंटे काटने की चिंता थी।समय ज्यादा था सो बच्चों को आइसक्रीम का ऑफर दे दिया उसके बाद तो बच्चों की उमंग देखकर ऐसा लगा कि सारे जन्नत की खुशियां बच्चों को एक साथ मिल गयी हो ,लगे हाथों पत्नी को भी साथ ले लिया। गए थे आइसक्रीम खाने और लौटे डिनर करके।पर आज हम परिवार के साथ बहुत हंसे थे शायद कई वर्षों बाद ऐसा हुआ था।आज मोबाइल पर कोई मेसेज नही आया और हमारी मस्ती में भी कोई ब्रेक नहीं लगा था। रात को भी हम रोज की अपेक्षा जल्दी बिस्तर पर जा चुके थे बच्चे भी थककर जल्दी सो गए।रोज रात 11 से पहले सोने की आदत ना थी इसलिए नींद अभी दूर थी पत्नी भी जाग रही थी मोबाइल चुप था हम दोनों बातें करते करते अपनी पहली मुलाकात तक जा पहुँचे।सच में आज का दिन तो बहुत अच्छा था।
दो दिन बाद सोशल मीडिया के वगैर रहने की आदत सी पड़ने लगी। शाम का समय मोहल्ले के लोगों के साथ या माता पिता या पुरानी चाय की दुकान पर दोस्तों की गप्पों में बीतने लगा खुशियां फिर बापस आ रहीं थी।मोहल्ले के लोगों से मुलाकात में नयी नयी जानकारी होने लगी। किशोर बच्चों के नए राज पता लगे।माँ बापू के साथ बैठने से स्नेह भरे हाँथ का स्पर्श पुनः मिला।पत्नी अब पहले से ज्यादा ऊर्जावान दिख रही थी। बच्चों को उनका समय मिलने से उनकी मुझसे दूरियां घटने लगीं।ऑफिस में भी सब मस्त थे। एक सप्ताह में ही हम सब वर्चुअल दुनियां के भ्रम को तोड़कर अपनी वास्तबिक दुनियां में आ चुके थे।
शाम को टीवी में बताया गया कि सोमबार से सरकार इंटरनेट पर लगी रोक हटा लेगी।मैंने सोचा चलो इंटरनेट की आजादी फिर मिलेगी पर रात भर ये सोचता रहा कि ये एक सप्ताह जो मैंने जी लिया बो शायद एक दशक से नहीं जी पाया था। सोमबार सुबह 6 बजे व्हाट्सएप्प का पहला मेसेज आया और मेरा हाँथ नींद में ही मोबाइल की तरफ बड़ा और एकाएक रुक गया । ये एक कठिन फैसला था दिल और दिमाग का अंतर्द्वंद।वर्चुअल और वास्तबिक की लड़ाई। सोशलमीडिया के वर्षों से बनाये साम्राज्य के पतन का डर। अनजाने अपनों के खोने का गम। पर एक सप्ताह से हँसते बच्चे, अपनों की तरह मिलते पड़ोसी, खुश बीबी और माता पिता ,चाय की दुकान पर दोस्तों की मस्ती ने वर्चुअल साम्राज्य के समाज पर विजय पा ली।
व्हाट्स ऐप्प और फेसबुक मोबाइल से बाहर जा चुके थे और गैलरी खुशियों के रंगीन छाया चित्रों से भर्ती जा रही थी।
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