सत्य कितने मौन हो तुम........
झूठ की आँधी से डरकर
सत्य कितने मौन हो तुम!
सत्य कितने मौन हो तुम!
झूठ तो चिल्ला रहा है
यूं निडर सा जा रहा है
आज जो तुमने ना रोका
कल तेरा चेहरा बनेगा
फिर,झूठ ही पूछेगा तुमसे
कि तुम बताओ कौन हो तुम?
यूं निडर सा जा रहा है
आज जो तुमने ना रोका
कल तेरा चेहरा बनेगा
फिर,झूठ ही पूछेगा तुमसे
कि तुम बताओ कौन हो तुम?
झूठ की आंधी से डरकर
सत्य कितने मौन हो तुम!
सत्य कितने मौन हो तुम!
तुम झूठ से खुद को बचाते
हर कदम पर कुचले जाते
रोशनी के पंख लेकर
घोंसले में मुंह चुराते
देखकर अपमान खुद का
क्यों नहीं बेचैन हो तुम?
हर कदम पर कुचले जाते
रोशनी के पंख लेकर
घोंसले में मुंह चुराते
देखकर अपमान खुद का
क्यों नहीं बेचैन हो तुम?
झूठ की आंधी से डरकर
सत्य कितने मौन हो तुम!
सत्य कितने मौन हो तुम!
चीर कर तुम बादलों को
सत्य की किरणें बिछा दो
सत्य की तलवार से तुम
झूठ का साया मिटा दो
है बहुत उम्मीद तुमसे
रोशनी के नैन हो तुम।
सत्य की किरणें बिछा दो
सत्य की तलवार से तुम
झूठ का साया मिटा दो
है बहुत उम्मीद तुमसे
रोशनी के नैन हो तुम।
झूठ की आंधी से डरकर
सत्य कितने मौन हो तुम!
सत्य कितने मौन हो तुम!
रचनाकार
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रिवेश प्रताप सिंह
जनपद गोरखपुर
के प्रा० वि० परसौनी में कार्यरत हैं।
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