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कुपथगामी प्रतिभा

"कुपथगामी प्रतिभा"
ज्ञान से तप कर
वो इतने धारदार बन गये ,
अपनी गरदन के लिये ही
वो तलवार बन गये ।
वो...छिपकर , कमरों में रहे
प्रेम की बारिश के समय ,
खुले आसमां में आकर
वो रक्त की बौछार बन गये।
उन्हें दर्पण समझकर
देखते रहे , खुद की तरह ,
वो तोड़कर दर्पण
एक घातक हथियार बन गये ।
हर पुष्प महकते हों
जिसकी डालों पर ,
वो.. किस डाल से लिपटे..?
कि सर्प से , विषदार बन गये।
देश , नौका की तरह
सबको लिये जाती है ,
तोड़ नैया ही वो.....
खुद ही खेवनहार बन गये ।
जिन्हें देखा हो मेरे देश ने
शिखरों की तरह...
अपने कर्मों से ही
वे गर्त के हकदार बन गये।
न जाने क्या घुला है..?
आज इनकी सासों में ,
दे रहा कौन ,..वो तालीम
जो ,.... गद्दार बन गये।

रचनाकार
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रिवेश प्रताप सिंह
जनपद गोरखपुर
के प्रा० वि० परसौनी में कार्यरत हैं। 

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