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नौकरी मे दूध है....

लूट लो... यही तो समय है।हम लोग तो हर तरफ़ से परेशान हैं ,सरकारी मुलाजिम न हुआ सर्कस का जोकर हो गया... बल्कि उससे भी बदतर..... क्योंकि वह तो रोने की एक्टिंग करता है हमे तो रोज ही रोना आता है ।और हमारे रोने का सीधा कनेक्शन तुम लोगों के हँसने से है ।
अब एत्ता उपदेश न बघारौ माटसॉब ,तुमका परै तो ल्याव नही हम तो शहर जाबै करब ,कउनौ बिकाये का न रहि जाई ।तुम्हरे हस के केत्तेहो टहिरत हैं के "रामधनी , हमार ख़याल कीन्हेव ।"
अबै कालै हैदरमऊ  वाले गुरू जी हमे ढ़ूँढ़त आये रहे ,हम शिवपूजन कि अम्मा ते कहि दीन कि कहि देव "उंई तौ घरै म नइ हैं।" चलै गें चुप्पेहे ।
तुम्हारे घर के भी तो दो बच्चे पढ़ते ही हैं, कम से कम स्कूल के काम मे सहयोग करो।सब जानता हूँ ; शहर मे जाकर पैंतीस के रेट पर बेच आते हो, और यहाँ इतना अंधेर मचाये हो ।
साहब.... हम का कहि रहेन ! काट देव नांव हमरे गदेलन के ।हम थोरो कहा रहै कि इनका पढ़ाव ,तुमहिन तो आये रहे हो कि "रामधनी ! लरिकन केर नांव लिखवा देव।" बाकी हम कब कहि रहेन कि हमसे लेव ,आपौ शहर से लइ लेव कउनौ हम मना किये हन का ? ६५/- से नीचे न करब ,एकौ रुपिया ।नही फ़िर हमे घाटा लाग जाई।आप पता कई लेव पहिले.... रिठवाँ,घरवासीपुर,बहादुरपुर सगले हार।जब कहूँ एत्ते सस्ते म आज मिल जाये तो बता दिहनेव..... हम तुम्हरे टाँगन तरे ते निकरि जाब ।
बइठा लड़िका यादवी,दूध-दूध चिल्लाये
अंधेर मचा है गाँव मा , दूध कहाँ से आये
दूध कहाँ से आये ? पियें सब लड़िका कइसे?
मच गा हाहाकार ,डरी सब गइया भंइसें
कइसे तुमका दई देन,बचै न हमरे घर का
केहिका दूध पिलाई ? घरै का बइठा लड़िका
(सुधाँशु श्रीवास्तव)

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