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चलो, आज उनके जीने की वजह बन जाएँ

चलो, आज उनके जीने की वजह बन जाएँ!

 बीतता वक्त यथार्थ से परिचय कराता है,
उम्र का ऐसा भी पड़ाव आता है,
जब हम बड़े हो जाते हैं,
माँ-बाबा बच्चे बन जाते हैं,
इसलिए......
अब हमारी बारी है,
प्यार बरसाने की,
अपनत्व लुटाने की,
 एक नया बचपन मिलकर फिर से बिताने की,
चलो ,आज उनके जीने की वजह बन जाएँ!

परों पर उड़ना सिखाया उन्होंने,
 आत्मनिर्भर भी बनाया हमें
 उनकी उम्मीदों पर हम भी ,
क्यूँ न खरे उतर कर दिखाएँ,
कँपकपाते हाथों का संबल बन ,
उनके स्याह चेहरे को धवल सा कर जाएँ,
चलो, आज...

काँधे को अपने उनका,
पालना बनाकर,
 गुज़रे लम्हों को संजो,
 तकिया बनाएँ,
मीठी-मीठी लोरी  सुना ,
पलकों मे उनके चैन की नींद ले आएं!

चलो, आज.....

तोतली -तोतली बातें,
 ढेर सारी फरमाईशें,
चाँद-तारों वाली रातें,
घोड़ा बन बाबा का सैर कराना
माँ का आँचल में हमें छुपाना,
 हमारा प्रश्नों की झड़ी लगाना,
 बिना विचलित हो उनका हमें समझाना,
 हम भी उनके  मन के उठते सवालों के,
 जवाब बन जाएँ,

चलो, आज.....

 डगमगाते कदम के,
हमनिशां बन जाएँ,
व्यस्त दिनचर्या से,
थोड़ा पल उनके लिए चुराएँ,
सूनी -सहमी आँखों को,
जुगनू  सा रोशन कर जाएँ,

चलो, आज......

 चेहरे पर सुकून के,
 भाव झलकाएँ,
अधरों पर मुस्कान ला,
साँसों में जीने की तमन्ना जगाएँ!
तिनकों को संजो जो मकान बनाया ,
अब उस मकान को घर तो बनाएँ!

चलो,  आज.......

रखते हैं  जो उन्हें गलियारों में,
 दालानों में, वृद्धाश्रम में,
उनके मन की उलझी गाँठ खोल आएं,
कुछ खुद में समझ लाएँ,
कुछ दूसरों को समझाएँ,
बारिश में उनकी छतरी बन,
दिल का रिश्ता दिल से निभाएँ!

चलो, आज उनके जीने की वजह बन जाएँ !!

रचयिता
सारिका रस्तोगी,  
सहायक अध्यापिका ,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय,
फुलवरिया, जंगल कौड़िया,

गोरखपुर!!


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