Breaking News

मिली यही सौगात

मिली यही सौगात

कहाँ गये सब हृदय के टुकड़े कहाँ गई वह बात।
पालन पोषण के बदले में मिली यही सौगात।।
कंधे पर बैठा कर जिनको रोज घुमाता था।
गोदी में लेकर उपवन की शैर कराता था।
खुद न खाकर कौर की रोटी जिन्हें खिलाता था।
इन्हें जरा सी चोट लगे मैं अश्रु बहाता था।।
तुम भी तो जगती रहती थी सारी सारी रात।।
कहाँ०
मेरे सूरज चाँद सितारे बाबू राजा कहता।
देख के इनको जीवन के मैं क्या क्या सपने बुनता।
पुस्तक कलम दवात शुल्क की मुझको चिन्ता रहती।
खुद के जेवर तुमने बेचा इन्हें ही गहना कहती।
इनके लिए ही कई भीगकर झेल लिए बरसात।
कहाँ०
बड़े हुए रोजगार पा लिए नई बहुरिया आई।
उसी में दुनिया दिखी इन्हें सुधि हम सब की बिसराई।
वैसे ईश्वर ने नाती परपोते पोते कुशल दिए।
किन्तु नई पीढ़ी ने धन वासना के पैरों कुचल दिए।
असंस्कृत हो दिवस बिताएं संस्कार बिन रात।।
कहाँ ०
आज शक्ति से हीन हुआ मैं जर्जर हुआ शरीर।
जिनका मैं पीड़ाहारी था वही न सुनते पीर।
पचास साल बाद भी तेरे हाथों चूल्हा जलता।
इतने बच्चे पैदा करने का क्या यह फल मिलता।।
ब्रह्म सत्य जगत है मिथ्या जले दीप दिन रात।।
कहॉं ०

✍️
शेषमणि शर्मा 'शेष'
प्रयागराज उत्तर प्रदेश

कोई टिप्पणी नहीं