दिल में जज़्बा हिन्दुस्तानी है
एक निवेदन करता सबसे, मेरी बात सुनो अब तुम।
लर्निंग आउटकम की भाषा, सीखो और गुनो अब तुम।
सबका पढ़ना सबका बढ़ना, ये अधिकार ज़रूरी है।
भारत की उन्नति की ख़ातिर, सबको प्यार ज़रूरी है।
कोई बच्चा शाला से अब, दूर न किंचित हो पाए।
देश हमारा शिक्षित होकर, विश्वगुरू फिर बन जाये।
शिक्षक की अगुआई में जब, शिक्षित हर तबका होगा।
शिक्षा के इस अनुष्ठान में, योगदान सबका होगा।
हम भारत के शिक्षक मिलकर, ये संकल्प उठाते हैं।
पूरी शक्ति मनोबल से हम, क़सम देश की खाते हैं।
बच्चों की शिक्षा में किंचित, कसर नहीं रहने देंगे।
जो कहते हैं हमें निकम्मे, और नहीं कहने देंगे।
बच्चे सब शाला में आयें, फिर ठहराव ज़रूरी है।
हर बच्चा फिर सीख रहा हो, उनका चाव ज़रूरी है।
समझें अगर ज़रूरी ख़ुद में, कुछ बदलाव ज़रूरी है।
बहुत हो चुका अंधियारों से, अब टकराव ज़रूरी है।
जाग उठो तुम लक्ष्य प्राप्ति को, कुछ तो ताव ज़रूरी है।
चट्टान तोड़ने को नदियों में, तेज़ बहाव ज़रूरी है।
हर घर रौशन हो शिक्षा से, ऐसी जोत जगानी है।
लक्ष्य कठिन है मगर हौसला, अपना तो चट्टानी है।
मंज़िल से पहले क्या थमना, मन में जोश-रवानी है।
हार नहीं मानेंगे दिल में, जज़्बा हिन्दुस्तानी है।
संघर्षों के बाद असल में, सुन्दर सुखद कहानी है।
शुष्क धरा के अन्दर ही तो, ठंडा-ठंडा पानी है।
रचनाकार- निर्दोष कान्तेय
लर्निंग आउटकम की भाषा, सीखो और गुनो अब तुम।
सबका पढ़ना सबका बढ़ना, ये अधिकार ज़रूरी है।
भारत की उन्नति की ख़ातिर, सबको प्यार ज़रूरी है।
कोई बच्चा शाला से अब, दूर न किंचित हो पाए।
देश हमारा शिक्षित होकर, विश्वगुरू फिर बन जाये।
शिक्षक की अगुआई में जब, शिक्षित हर तबका होगा।
शिक्षा के इस अनुष्ठान में, योगदान सबका होगा।
हम भारत के शिक्षक मिलकर, ये संकल्प उठाते हैं।
पूरी शक्ति मनोबल से हम, क़सम देश की खाते हैं।
बच्चों की शिक्षा में किंचित, कसर नहीं रहने देंगे।
जो कहते हैं हमें निकम्मे, और नहीं कहने देंगे।
बच्चे सब शाला में आयें, फिर ठहराव ज़रूरी है।
हर बच्चा फिर सीख रहा हो, उनका चाव ज़रूरी है।
समझें अगर ज़रूरी ख़ुद में, कुछ बदलाव ज़रूरी है।
बहुत हो चुका अंधियारों से, अब टकराव ज़रूरी है।
जाग उठो तुम लक्ष्य प्राप्ति को, कुछ तो ताव ज़रूरी है।
चट्टान तोड़ने को नदियों में, तेज़ बहाव ज़रूरी है।
हर घर रौशन हो शिक्षा से, ऐसी जोत जगानी है।
लक्ष्य कठिन है मगर हौसला, अपना तो चट्टानी है।
मंज़िल से पहले क्या थमना, मन में जोश-रवानी है।
हार नहीं मानेंगे दिल में, जज़्बा हिन्दुस्तानी है।
संघर्षों के बाद असल में, सुन्दर सुखद कहानी है।
शुष्क धरा के अन्दर ही तो, ठंडा-ठंडा पानी है।
रचनाकार- निर्दोष कान्तेय
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