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मेरी माँ

          "मेरी माँ"

मन की भोली सच्ची न्यारी
माँ तू लगती कितनी प्यारी,

नींदे अपनी वारी तूने
लड़कर कितनी रातों से,
लोरी गा कर मुझे सुलाया
देकर मीठी थापों से।

मचल उठी थी एक बार मैं
देख हाट में गुड़िया प्यारी
झटपट दे कर उसे खरीदा
जो पास जमा थी पूँजी सारी
खेला करती थी गुड़िया से
उस पर अपना प्यार उड़ेल
पर माँ की ममता से बढ़कर
था ना उसका कोई मेल,

आँचल की छाया में बीता
मासूम बड़ा वो प्यारा बचपन
आहट दे कर धीरेसे
आया कब इठलाता यौवन
पड़ने लगीं गिद्ध की नज़रें
खिलते इस कुसुमित तन पर
छिपा लिया माँ ने आँचल से
कवच सुरक्षा का बन कर,

शिक्षा, सोच,समझ, बूझ से
माँ ने मुझको दिया तराश
पा कर गौरव नारी का
हुयी नहीं मैं कभी हताश,

ढलती गयी कयी रूपों में
बेटी, बहन, बहू फिर माँ
माँ की महिमा को जाना जब
घर आयी नन्ही सी जां!



✍  कविता तिवारी
      सहसमनवयक
      ब्लॉक संसाधन केंद्र मलवां

       जनपद फतेहपुर।   


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