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रतिया दूध बिलारी पी गे

अब क्या कहूँ !
मंगल की रात इन पर बहुत भारी पड़ती है।सपने मे भी चिल्लाते हैं "लाईन लगाओ पहिले ,बिना लाईन लगाये किसी को नही मिलेगा।"
अब तो मंगल का व्रत भी शुरू कर दिये हैं ।कहते हैं , " लोगों पर शनि भारी होता है लेकिन हमलोगों पर तो बुध भारी है।"
शनीचर को तेल तो चढ़इबै करते हैं दियाली भर , लेकिन बुधवारी दूध ने हिलाये डारा है।
हदासियाये गये हैं, हमाई जान को भी आफ़त आये गई कहि रहे कि अपने बप्पा से एक भैंस माँगि लो।हमने कही कि भैंस तो बहुतई महंगी पड़ेगी,इत्ता बजट कैसे निकारेंगे बापू ?तो कहने लगे , "चहिये तो भैंस ही,भले मरियल ही सही।हम सारा पैसा चुका देंगे समय पर ।लेकिन इकट्ठै न दे पायेंगे।मुसीबत मे ससुराल ही काम आती है ,बस इसीलिये तुमसे कह रहे।अब बापू को सोचना है कि इंपॉर्टैंट क्या है ?भैंस कि ससमय ख़रीद या दामाद की असमय वेदना ?"
हम तो बहुत समझाये कि बकरी से काम चलाये लो, फ़ोटू तो दूधै की भेजनी है ना,जानवर से क्या मतलब ? तो हत्थे से उख़ड़ गये बोले ,
"हम पर कार्यवाही ही करवाओगी का ? इत्ता तो मानइ लो कि तब कोई साथ न देगा।सब हमको ही झेलना पड़ेगा। शाशन की मंशा के हिसाब से चलने दो,अपनी बुद्धि न दउड़ाव।"
जौ आँखें तरेर के हमाई तरफ़ देखे तो बस हम इत्ता ही बोल पाये , "हम तो बस ऐसे ही पूछ रहे, बकरी के दूध मे क्या परेशानी है ?हमारे गाँधी जी भी तो पीते ही थे ना !"
चलते-चलते
रतिया दूध बिलारी पी गे
जो फ़्रिज से बाहर धरा भगोन
बिन बिजली के करै न ठंडा
सब शिक्षक हैं टेंशन के जोन
भलै न सुधरे बिजली-पानी
लेकिन दूध पियाओ तुम
बनै लड़िकवा दारा सिंही
फिर चाहे घर से लाव तुम
दूध फ़टी तो लफड़ा होई
तब फ़िर टेंशन तगड़ा होई
अबै रुको तुम देखे का हो ?
अब टीचर-टीचर झगड़ा होई
पेट पकड़िहें अगर गदेल
जायें परी तब तुमका जेल
बड़े मजे म टीचर स्वांचेव
आगे कसबे अउर नकेल
(सुधाँशु श्रीवास्तव)

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