शिक्षक हैं भगवान नहीं हैं
शिक्षक हैं भगवान नहीं हैं
एकल विद्यालय चलवाते,
ऑनलाइन सब काम कराते।
ऑफलाइन घोड़े दौड़ाते,
इतने पर भी नहीं अघाते।
हम कोई शैतान नहीं हैं,
दिए हुए वरदान नहीं हैं।
इतना बोझ सहेंगे कैसे,
शिक्षक हैं भगवान नहीं हैं।।१।
विज्ञापन जो दिया गया था,
सारा मानक पूर्ण हुआ था।
टेट का तो अस्तिव नहीं था,
उसका अङ्क कहाँ से लाते।
जब चाहो तुम नियम पलट दो,
हम रोटी पकवान नहीं हैं ।।
इतना बोझ सहेंगे कैसे,
शिक्षक हैं भगवान नही हैं।।२।।
विज्ञापन में ज्ञान अधूरा,
हमने लड़ा किया सब पूरा।
तुमने खेल बहुत खेले हैं,
हमने तुमको खूब झेले हैं।
छह-छह साल लड़े न्यायालय,
हम कोई नादान नहीं हैं।
इतना बोझ सहेंगे कैसे,
शिक्षक हैं भगवान नहीं हैं।।३।।
न्यायालय में बोझ बढ़ा है,
भारत का ये रोग बड़ा है।
मनमाने मानक गढ़ते हो,
घर जाकर कितना पढ़ते हो।
टेट बिना परित्यक्त बताते,
हम जर्जर मकान नहीं हैं।
इतना बोझ सहेंगे कैसे,
शिक्षक हैं भगवान नहीं हैं।।४।।
चोरी से तुम नियम बनाते,
दरवाजे से क्यों ना आते।
तुम्हीं बताओ कितना झेलें,
न्यायालय-न्यायालय खेलें।
तुम पाषाण हृदय बन बैठे,
हम पत्थर इंसान नहीं हैं।
इतना बोझ सहेंगे कैसे,
शिक्षक हैं भगवान नहीं हैं।।५।।
बीस-पचीस वर्ष सेवा के,
फिर भी योग्य नहीं बतलाते।
आप बताते खेल मध्य में,
नियम नहीं बदले जाते ।
खेल मध्य में नियम बदलने
वाले तो नादान नहीं हैं।
इतना बोझ सहेंगे कैसे,
शिक्षक हैं भगवान नहीं हैं।।६।।
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रमेश तिवारी
प्रभारी प्रधानाध्यापक
प्राथमिक विद्यालय हरमन्दिर खुर्द
क्षेत्र-फरेन्दा
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