हिन्दी
हिन्दी
हिंदी भारत का गौरव है,
भारत की यह आशा है।
दादी-दादा मात-पिता,
सबकी यह पहली भाषा है।।१।।
हिंदी से पहचान मिली है,
हर सपनों को जान मिली है।
सबके घर खिल जाए हिंदी,
जन-जन से मिल जाये हिंदी।
सब में लाती प्रेम सदा,
सबके जीवन को ताराशा है।
दादी-दादा मात-पिता,
सबकी यह पहली भाषा है।।२।।
मन के भाव प्रकट करती है,
हृदय वेदना को हरती है।
क्षमा,प्रार्थना,शब्द साधना,
सरल-सहज आगे बढ़ती है।
शब्दों से रस मधुर घोलती,
जीवन की प्रत्याशा है।
दादी-दादा मात-पिता,
सबकी यह पहली भाषा है।।३।।
एक सूत्र में बांध रही जो,
सबको संग-संग साध रही जो,
उत्तर से दक्षिण तक जाती,
पूरब से पश्चिम को आती,
भारत की आत्मा हिंदी हो,
हमसब की अभिलाषा हो,
दादी-दादा मात-पिता,
सबकी यह पहली भाषा है।।४।।
बच्चों की यह पहली बोली,
सबके कानों में रस घोली,
करती जिसमे हँसी ठिठोली,
आपस में बच्चों की टोली,
हिंदी बिन जो जीवन जीता,
वो जन समझो प्यासा है,
दादी-दादा मात-पिता,
सबकी यह पहली भाषा है।।५।।
भारत की संस्कृति हिंदी है,
देश के माथे की बिंदी है,
हिंदी सबको लाड़ लड़ाती,
हर भाषा को गले लगती,
इसके बिन जीवन सूना है,
चारो ओर निराशा है,
दादी-दादा मात-पिता,
सबकी यह पहली भाषा है।।६।।
रचयिता-
रमेश तिवारी
प्रभारी प्रधानाध्यापक
प्राथमिक विद्यालय हरमन्दिर खुर्द, फरेन्दा, महराजगंज
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