जन्मभूमि भी हुई पराई ,कैसी रीत जगत ने बनाई । मन ही मन में बेटी सोचे ,पीहर से कोई बोले न जाओ ..... बाबुल मैया के मन बदले ,पोते पोती ज्यादा भ...Read More
जन्मभूमि भी हुई पराई
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 2
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मई 26, 2025
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नेपोलियन ------------- हाँ, हाँ, वही — वही नेपोलियन, गली के कोने पर कूड़े के ढेर से बने पिरामिड को अपना साम्राज्य समझने वाला, और खुद को उसका...Read More
नेपोलियन
Reviewed by Ram krishna mishra
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मई 26, 2025
Rating: 5
अंक ज़रूरी हैं, पर जीवन सिर्फ अंकों से नहीं चलता। इसलिए अब वक्त है कि हम इस अंधी दौड़ से बाहर निकलें और बच्चों को उनके नंबरों से नहीं, नजरि...Read More
अंकों की दीवार
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 2
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मई 15, 2025
Rating: 5
वक़्त चाहिए सपनों को आकार देने में हर महान निर्माण की शुरुआत एक छोटे, अनदेखे प्रयास से होती है। जो हाथ से फिसला, वही सबक बनकर वापसी की राह द...Read More
वक़्त चाहिए सपनों को आकार देने में
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 2
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मई 06, 2025
Rating: 5
कभी सरकारी बसों की शोभा और लोकतंत्र की प्रतीक रही “विधायक/सांसद हेतु आरक्षित सीट” अब बस के कोने में चुपचाप धूल फांक रही है। बदलते राजनीतिक च...Read More
मैं वही सीट हूं
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 2
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मई 05, 2025
Rating: 5
यह ग़ज़ल उस मध्यमवर्गीय मानसिकता का आईना है, जो दो छोरों के बीच झूलती रहती है — एक ओर अहंकार, दूसरी ओर दीनता। समाज में जीने की मजबूरी उसे बा...Read More
हर रोज़ दो चेहरों में ढलता है आदमी
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 2
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मई 04, 2025
Rating: 5